मेरा जीवन जैसे कोई
जंगल हो पत्थरों का ........
संवेदना ,भावनाओं से परे ,
बेशक बिखरी है आस पास ,
चारों और चमकीली मणियाँ ,
और इन्ही पत्थरों को सर पर
सजा कर अक्सर जीवन की
मुस्कान ढूंढ़ती रहती हूँ मैं............!
कभी इन बेजान पत्थरों में भी
फूल खिलाने और कभी खिलने
का इंतज़ार करती रहती हूँ ,
क्यूंकि यही तो जीवन है ...........:)
इतनी निराशा भरी कविता उपासना ने लिखी ...... बात कुछ हजम नही हुयी परन्तु बहुत सुन्दर लिखा हैं
ReplyDeleteजैसे मन की भावना वैसा ही लेख .......शुक्रिया नीलिमा जी
DeleteEsi bhavna kyu bani upasna ? Vaise kavita achchi likhi hai
ReplyDeleteचंद शद्बों में आशावादी स्वर। बेजान पत्थरों में फूल खिलाना और खिलने का इंतजार जीवट को दिखाता है।
ReplyDeletesundar kavita...shayad kabhi kabhi aa jate hain aise bhav man mey na chahte hue bhi....
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteवाह: बहुत सुन्दर भाव ...मेरी पोस्ट..." माँ का आंचल "..अभिव्यंजना में .".मेरा भैया" ..बाल मन की राहें में ..आप का स्वागत है...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता |
ReplyDeletenice creation.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है .........आशा और निराशा तो जीवन का हिस्सा है
ReplyDeleteसुंदर ...
ReplyDeleteआपकी यह अप्रतिम् प्रस्तुति ''निर्झर टाइम्स'' पर लिंक की गई है।
ReplyDeletehttp//:nirjhat-times.blogspot.com पर आपका स्वागत है।कृपया अवलोकन करें और सुझाव दें।
सादर
फूलों को खिलने से कोई नहीं रोक सकता !
ReplyDeleteबहुत उम्दा,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: दीदार होता है,
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
http://jyoti-khare.blogspot.in
वो सुबह कभी तो आएगी.....निराशा के बादल छंट ही जाएंगे, उदास न हों
ReplyDeleteसच में यही जीवन है...बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteजीवन को सुंदरता से परिभाषित किया है, बधाई.
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