हे सूर्यनारायण ...!
तुम चलते रहते हो
अथक , अनवरत ...
जैसे एक माँ अपनी संतानों
पर बिना भेदभाव किये
ममता लुटा देती है ,
वैसे ही ,
तुम भी तो
इस धरा के हर प्राणी ,
हर एक भाग पर ,
अपनी किरणों को लुटा कर
प्रकाशमान कर देते हो ...
हे सूर्यनारायण ...!
मुझे तुम्हारी ये किरणे ,
भोर में नन्हे मासूम शिशु
जैसी मुस्काती लगती है ...
दोपहर में एक मेहनत -कश ,
इंसान की तरह चमकीली
और प्रेरणादायक
लगती है ...
ढलती धूप , जैसे कोई
प्रियतमा ने अपनी जुल्फें
बिखरा दी हो और
उसके साये में जरा
विश्राम ही मिल जाये...
तुम्हारी सांझ की किरणे ,
अपनी बाहें फैला कर ,
जैसे सारी थकन को दूर
करती ...
हे सूर्य नारायण ...!
तुम्हारे सातों घोड़े ,
निरंतर चलायमान
हो कर ,
सातों दिशाओं के
प्रहरी बने रहते हैं ,
फिर क्यूँ नहीं
तुम उन दुखों को ,
संतापों को
अपनी तेज़ किरणों से
जला कर नष्ट कर देते ...
( चित्र गूगल से साभार )
माँ की ममता से सूर्य नारायण ,मेहनत -कश आदमिओं
ReplyDeleteके खूबशूरत आह्शाशों से जिन्दगी को नापती सुन्दर
प्रस्तुति
सूर्य तो अपना कार्य कर रहा है ..
ReplyDeleteप्रकाश देना ही उसका कर्म है न की नष्ट करना ...
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (20-05-2013) के 'सरिता की गुज़ारिश':चर्चा मंच 1250 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
ReplyDeleteसूचनार्थ |
अंधकार दूर करना ,,ऊष्मा देना उसका काम है
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postअनुभूति : विविधा
latest post वटवृक्ष
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन सार्थक प्रस्तुतीकरण.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...सार्थक प्रस्तुतीकरण.आपकी पोस्ट्स 9 मई के बाद मुझे प्राप्त नही' हुई'. बहुत अच्छी कविताये' है', बधाई स्वीकार कीजिये.
ReplyDeletesundar prastuti....bahut accha laga padhna
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से समेटा है आपने श्रृष्टि को सूरज के किरणों संग बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत कुछ का अनुसरण कर बहुत कुछ देखें और पढें
ग्रीष्म ऋतू में तो सूर्य नारायाण कुछ जायदा ही तेज चल रहे ... :)
ReplyDeleteबेहतरीन !!
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियां हैं, मन को छू गईं।
ReplyDelete