Saturday 14 February 2015

प्रेम को खूंटी पर लटका दिया है मैंने....

प्रेम को
खूंटी पर लटका दिया है मैंने
झोली में डाल कर
दादी की पटारी में ।

पटारी ,
जिस में दादी
रखा करती थी
सूई , धागे और बटन ।

उधड़ते ही
जरा सी सीवन
दादी झट से सिल
दिया करती थी
वैसे ही जैसे,
पाट दिया करती थी
रिश्तों में पड़ी दरारें ।

अब मैंने भी
उसी पटारी में
प्रेम को रख दिया है
दादी की तरह
कोशिश मैं भी करती हूँ ।

जब तब
वह पटारी खोलकर
सिल देती हूँ
रिश्तों की उधड़ी
सीवन को
प्रेम को विश्वास की
सूई से ।