Wednesday 29 February 2012

सोचा ना था


सोचा ना था कभी ऐसा  भी होगा ,

कोई इंतना भी मन को भायेगा और 

चुपके से मन में घर कर जायेगा .........

नाम जब उसका लबों पर आएगा 

तो दिल होले से  धडक जायेगा और

कदम खुद -ब-खुद खींचते चले जायेंगे ,

उसकी तरफ ...........

नज़र आएगा वह  हर पल ,हर जगह ,

ख़्वाबों में आकर नींद भी चुरा ले जायेगा

 कभी ऐसा भी होगा मैंने ना सोचा था ............


अन्नपूर्णा

गहरे सांवले रंग पर

गुलाबी सिंदूर ,गोल   उपासना सियाग 

बड़ी बिंदी ...

कहीं से घिसी ,

कहीं से

सिली हुई साड़ी पहने

अपनी बेटी के साथ खड़ी 
कुछ कह रही थी
मेरी नयी काम वाली ..
कि मेरी नज़र उस के

चेहरे,गले और

बाहं पर मार की

ताज़ा-ताज़ा चोट पर

पड़ी 

और दूर तक भरी 
गहरी मांग पर भी ...

 पूछ बैठी !

कितने बच्चे है तुम्हारे ?

सकुचा कर बोली जाने दो

बीबी ...!

क्यूँ ..!

तुम्हारे ही हैं न !

या चुराए हुए ...?

और तुम्हारा

नाम क्या है,

बेटी का भी... 

वह बोली 
नहीं-नहीं बीबी ....
चुराऊँगी क्यूँ भला ..!

पूरे आठ बच्चे हैं 

ये बड़ी है !

सबसे छोटा गोद में है। 

पता नहीं मुझे क्यूँ हंसी

आ गयी !

इसलिए नहीं 

कि उसके

आठ बच्चे हैं ....

कि

अपने ही बच्चों की

 भूख के लिए
 सुबह से शाम भटकती,

"अन्नपूर्णा " और उसकी बेटी

" लक्ष्मी "...!


Monday 27 February 2012

मज़बूरी


जो सर सरहद पर

 न झुका था कभी ,

उस सर को मैंने

 झुकते देखा है ..


जिन हाथों  को

 दुश्मन के गले दबाते

 देखा था कभी ,

उन हाथों को मज़बूरी में

 जुड़ते मैंने देखा है ..


जो आँखे सरहद पर

 अंगारे उगलती थी कभी 
,
उन्ही आँखों को मज़बूरी के

 आंसुओं से भरा मैंने देखा है ...


क्यों कि 

आज वह सरहद पर नहीं 

अपनी बेटी के ससुराल

की देहरी पर खड़ा था ...

पता नहीं

सर पे पानी  का मटका उठा कर 

 लिए जाती हुई को पुकारा मैंने तुम कौन हो .........!

वो मुस्कुराई मैं एक बेटी थी और बहन भी ............

अब एक पत्नी हूँ और एक माँ भी
 ,
और भी कई नाम है अलग -अलग रिश्ते है ...........!

अच्छा नाम भी कई ,रिश्ते भी कई ,

पर क्या तुम इंसान भी हो ,

अब मेरे सवाल पर थोडा सा गड़बड़ाई 

पहले अपने को फिर मुझे ऊपर से नीचे देखते

हुए धीरे से बोली "पता नहीं ".......!


Saturday 25 February 2012

नर्तकी


विवाह का शानदार समारोह 
चहुँ ओर  रौशनी ,चमकीला 
शोर -शराबा और नर्तकी का 
भड़कीला नृत्य ...............
नर्तकी , निर्विकार रूप से 
संगीत पर नृत्य करती 
इधर -उधर , नज़र दौड़ाती ,
अश्लील -फब्तियों के तीरों को 
सहन करती ,..............
आखिर थक -हार के जब आईने 
के सामने आ खड़ी हुई  और 
चेहरे  से एक -एक कर के  रंग 
उतारना शुरू किया ,लेकिन उसके अंतर तक,
 एक काला रंग, जो सभ्य समाज की 
लपलपाती नज़रों का लगा था ,
 उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था .........
और जब उसे , औरतों का उसकी ओर 
नफरत और कटाक्ष भरी नज़रों से 
देखना याद आया तो आंसूओं ने ही 
सारा काज़ल धो  डाला ..........!
सूनी आँखों से सोचती रही वह, उसकी 
अपनी मजबूरी को और चल पड़ी ............


Friday 24 February 2012

लक्ष्मण रेखा

उसने , अपनी कजरारी आँखों 
में काज़ल  की लकीरों से,एक 
 लक्ष्मण रेखा खींच रखी है .........  
.इस रेखा के पीछे  उसने ना जाने
 कितने अरमान ,गम को धकेल 
रखा है अपने भीतर .......
उभरते आंसूओं को अपनी आँखों की 
चमक बताती ,ना जाने कितने अंधेरों 
को धकेल रखा है अपने भीतर ......
उसने अपने लबों पर जो रंगीन रेखा है 
उसको भी  एक लक्ष्मण रेखा ही बना
 रखा है .............
इस रंगीन रेखा को ,एक मुस्कान से
 खिलखिलाहट में बदलने में ना जाने
 कितनी सिसकियाँ दबाई है उसने ..........


Wednesday 22 February 2012

तुम्हारा अक्स

कल रात ढूंढा 
 मैंने  हर जगह
कभी तारों में तो कभी
 चाँद में ...
तुम्हारा ही अक्स नज़र
आया मुझे हर जगह....

निहारती रही तुम्हें ,
जब तक
नयनों में तुम ख्वाब  बन कर
 ना समाये ....

सुबह को ढूंढा
 ओस की बूंदों पर,
तुम्हारा ही अक्स नज़र
आया मुझे
झिलमिलाती सतरंगी किरणों में।


Saturday 11 February 2012

तुम्हारा नाम


 तुम्हारा नाम मैंने पत्थर
  पर नही लिखा था 
पत्थरों पर लिखे नाम
वक्त के साथ धुंधला
 जाते है ...

मैंने तुम्हारा नाम ,
सागर किनारे लिखा था 
सागर के किनारे की रेत पर
लिखे नाम 
कभी नहीं मिटते ...

वे नाम
लहरों के साथ
सागर में ही  मिल
जाते है ...

 हर लहर के साथ 
बहते रहते है
ना घुलते है
ना गलते है 
इसीलिए सागर का 
पानी भी खारा होता है 
वो नाम आंसुओं से 
जो लिखे होते है ...

कभी अंजुरी भर कर
 देखोगे  या 
किसी लहर पर 
कोई किरण को झिलमिलाती
देखोगे
तुम्हे लिखा नज़र आएगा
 तुम्हारा नाम ...

Friday 3 February 2012

सुनो बेटी.................


सुनो बेटी.........!
अब  मैं नहीं सुनूंगी
 कोई भी पुकार -फरियाद
तुम्हारी
ना ही  पढूंगी अब मैं
 कोई भी पाती तुम्हारी ...

तुम्हें क्यूँ कर जन्म दूँ
जब मैंने ,
कोई भी - कभी भी
किया नहीं कोई प्रतिकार
अपने ही घर में
जब हुआ
किसी और स्त्री पर अत्याचार ...

बन रही मूक की भांति
बेजुबां
जबकि मेरे पास भी थी
एक जुबां ,
रही  मैं तब भी बन मूक
जब हुआ किसी परायी बेटी
पर अत्याचार ...

ना देख पाउंगी
 अब मैं तुम्हारे साथ
 कोई होते अत्याचार -दुराचार
अब मेरी "सोच की"  भी
आत्मा थर्राती है ...

तुम्हें
 खुला आसमान ,
मज़बूत धरती
देते हुए डर सताएगा
मुझे भी अब ,
क्यूंकि

 मैंने नहीं सिखाया तुम्हारे
भाइयों को स्त्री का आदर
करना ...!

 जब कटे हो
मेरे अपने ही पंख ,
जब बंद हूँ खुद ही पिछड़ी सोच के
पिंजरे में
नहीं दे सकती जब तुम्हें मैं एक
 खुला आसमान
तब तक तुम जन्म न ही लो ...




Wednesday 1 February 2012

माँ के हाथ का गुलाबी स्वेटर

पार्सल में माँ के
हाथ का बुना

गुलाबी स्वेटर ,
नर्म -मुलायम सा ,
बिलकुल
माँ के दिल जैसा .........

ऊन के गोले को जाने
 कितनी बार अपने गालों से
छुआया होगा माँ ने ,
चुभन वाली ऊन को
वह नहीं चुनती मेरे लिए ......

दुनिया भर की चुभन से अब भी
बचा लेना चाहती है मुझे ....

अब भी नहीं समझना चाहती
उम्र और समय ने मुझे भी बड़ा
बना दिया है ...............

कमजोर होती निगाहों को
चश्मा उतार कर ना जाने
कितनी बार पोंछा होगा ...

एक -एक फंदे ,
डिजाइन में प्यार
और ममता डाल कर बुने इस
स्वेटर में कितनी गर्माहट है ....
ये तो वही बता सकता है
जिसने माँ के हाथो से बुना
 स्वेटर पहना हो ......