गहरे सांवले रंग पर
गुलाबी सिंदूर ,गोल उपासना सियाग
बड़ी बिंदी ...
कहीं से घिसी ,
कहीं से
कहीं से
सिली हुई साड़ी पहने
अपनी बेटी के साथ खड़ी
कुछ कह रही थी
कुछ कह रही थी
मेरी नयी काम वाली ..
चेहरे,गले और
बाहं पर मार की
ताज़ा-ताज़ा चोट पर
पड़ी
और दूर तक भरी
गहरी मांग पर भी ...
और दूर तक भरी
गहरी मांग पर भी ...
पूछ बैठी !
कितने बच्चे है तुम्हारे ?
सकुचा कर बोली जाने दो
बीबी ...!
क्यूँ ..!
तुम्हारे ही हैं न !
तुम्हारे ही हैं न !
या चुराए हुए ...?
और तुम्हारा
और तुम्हारा
नाम क्या है,
बेटी का भी...
वह बोली
नहीं-नहीं बीबी ....
बेटी का भी...
वह बोली
नहीं-नहीं बीबी ....
चुराऊँगी क्यूँ भला ..!
पूरे आठ बच्चे हैं
ये बड़ी है !
ये बड़ी है !
सबसे छोटा गोद में है।
पता नहीं मुझे क्यूँ हंसी
आ गयी !
इसलिए नहीं
कि उसके
कि उसके
आठ बच्चे हैं ....
कि
कि
अपने ही बच्चों की
भूख के लिए
सुबह से शाम भटकती,
भूख के लिए
सुबह से शाम भटकती,
"अन्नपूर्णा " और उसकी बेटी
" लक्ष्मी "...!
कम शब्दों में ही बड़ी बात कह दी ... सच उपासना ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया प्रतिभा दी.........
DeleteAti Sunder Upasna sakhi -
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया रमा सखी ............:0
Deleteउपासना जी ..आप अपने को सदा कम आंकती है ..औ ये आपकी विनम्रता है .....जो सदा ही ऊँचाइयों तक ले जाती है ......आप ने कमाल का लिखा है .......मेरा सलाम और ...बधाई आपको .....:)))))
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया अरुणा जी ....:)
Deleteबहुत कुछ कह दिया कुछ शब्दों में...बहुत सुन्दर
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