Friday 31 October 2014

तांका लिखने का प्रथम प्रयास


1)
 रूप सुहाना 
मधुर है मुस्कान 
प्यारी बिटिया 
आँगन की रौनक 
कलेजे की ठंडक

2)
    सर्द मौसम
या सर्द होते रिश्ते
जमता लहू
अलाव तो जलाओ
प्रेम व विश्वास का

Tuesday 28 October 2014

कुछ शब्द....

कुछ शब्द
जो मात्र  वाक्य ही होते हैं
वे कभी कभी
किसी के हृदय पर
इबारत बन कर
आयत या श्लोक से
लिख लिए जाते हैं ।

वे आयतें या श्लोक
हृदय को
कभी सुकुन देती ,
अहसास  अपने पन का
जता जाती है
कभी बेगाना पन सा अहसास जता
उदास भी करती है....

Sunday 19 October 2014

सूरज की बिंदी से शुरू चाँद की बिंदी पर खत्म


भोर से साँझ
सूरज की सिंदूरी - सुनहरी बिंदी से शुरू
चाँद की रुपहली बिंदी पर खत्म
एक औरत का जीवन।

सूरज की बिंदी देखने की
फ़ुरसत ही कहाँ !
सरहाने पर या माथे पर
खुद की बिंदी और खुद को भी संभालती
चल पड़ती है दिन भर की खट राग की लय  पर।

दिन भर की खट राग  पर
पैरों को पर बना कर दौड़ती
कभी मुख पर चुहाते पसीने को पोंछती
आँचल को मुख पर फिराती ,
सरक जाती है जब बिंदी माथे से
जैसे सूरज पश्चिमांचल को चल पड़ा
या मन ही कहीं  बहक पड़ा हो ,
थाली में देख कर ही
अपनी जगह कर दी जाती है बिंदी।

सारे  दिन की थकन
या ढलते सिंदूरी सूरज की लाली ,
चेहरे के रंग में रंग जाती है बिंदी।

सिंदूरी रंग से रंगी बिंदी
चाँद की बिंदी से झिलमिला जाती है
मन का कोना तो
तब भी अँधियारा सा ही रहता है।


अपने माथे की बिंदी सहेजती ,
अगले दिन के सपने बुनती
चाँद की बिंदी को
उनींदी अँखियों से देखती
जीवन राग में कहीं खो जाती ,
बिंदी से शुरू बिंदी पर ख़त्म
जीवन बस यूँ ही बीत जाता।