Sunday 25 December 2016

प्रेम तुम कहीं नहीं हो

प्रेम तुम,
छद्म रूप हो
माया हो
मोह हो
मरीचिका हो,

ना नज़र
आने वाली
अप्राप्य वस्तु से हो

मुट्ठी में बंद
रेत  से  हो
फिसलते जाते हो
 पल-पल,

पतझड़ के
गिरते पत्ते की
 तरह हो

जाड़े की धूप
जैसे हो
बिना गर्माहट लिए,

प्रेम तुम ,
कुछ भी हो सकते हो
बस
ख़ुशी नहीं हो सकते,

निराशा हो
आँखों की धुंधली होती
चमक की तरह.

प्रेम तुम
कहीं नहीं हो,
अगर हो तो
बस मृत्यु पथ पर ही।



Friday 9 December 2016

मेरी यह जिन्दगी तुम से ही तो खूबसूरत है ...

शुक्रिया जिंदगी ,
पल-पल
साथ देने को ,
चाहे कभी तुम भ्रम हो
 कभी सत्य।

नज़र आती हो
धुंध के धुँधलके में
कभी परछाई सी।

बढ़ती हूँ तेरी और
बढ़ाते हुए
धीमे -धीमे कदम ,
गुम हो जाती हो
भ्रम सी।

फिर भी जिंदगी
खूबसूरत हो तुम !

क्या फर्क है
तुम जिन्दगी हो
 या
तुम्हारा नाम जिन्दगी है।

चाहे तुम भ्रम ही
 क्यूँ ना हो ,
मेरी यह जिन्दगी
तुम से ही तो
 खूबसूरत है !



Tuesday 29 November 2016

ਜਿਵੇਂ ਪੱਤਝੜ ਦਾ ਰੁੱਖ

ਮਨ ਪੰਛੀ
ਲੱਭਦਾ ਰਿਹਾ
ਇਕ ਠਿਕਾਣਾ।

ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ
ਇਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਆਲਣਾ
ਤੇਰੇ ਮਨ ਵਿੱਚ। 

ਭਟਕਦਾ ਰਿਹਾ 
ਇੱਧਰ -ਉੱਧਰ 
ਤਰਸਦਾ ਰਿਹਾ 
ਤੇਰੀ ਇਕ ਨਜ਼ਰ ਨੂੰ। 

ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ 
ਤੇਰੀ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਬਾਹਾਂ ਦਾ 
ਸਦਾ ,
ਤੇਰੇ ਮਨ ਚ ਰਹਿਣ ਦਾ 
ਇਸਰਾਰ।

ਪਰ ਤੂੰ ਤਾਂ
ਖੜਾ ਹੀ ਰਿਹਾ
ਉਦਾਸ ਜਿਹਾ,
ਜਿਵੇਂ ਪੱਤਝੜ ਦਾ
ਰੁੱਖ ਹੋਵੇਂ ।










Monday 7 November 2016

और तुम मुस्कुरा देना

आऊं नज़र तुम्हें 
कभी , तो
नजरें न चुरा लेना...

देख लेना
बस नज़र भर के
और
मुस्कुरा देना...

सोचो तो जरा
कोहरा छा जाने से,
कम तो नहीं हो जाता
सूरज का वजूद ...

दूर हो जाने से
दूर चले जाने से 
कम तो नहीं हो जाता
तुम्हारे होने का अहसास...

बस यही सोच कर
मुझे याद कर के
मुस्कुरा देना....

Wednesday 28 September 2016

लिखा है मैंने एक आखिरी प्रेम गीत...

ज़िन्दगी की रात में
लिखा है मैंने ,
एक आखिरी प्रेम गीत।

अगर सुनाई दे
तुम्हें ,
तो सुन लेना !

इसे सुन ने की भी
एक शर्त है मगर !

किसी के कहने -सुनने से नहीं ,
अगर मन से सुनो तो ही
सुनना !

यह मेरा प्रेम गीत
नहीं सुनाई देगा
किसी हृदय हीन को !

ह्रदय तल के
आखिरी तल से ,
उभरी टीस से निकला
यह गीत
तुम्हें सुनाई दे .
तो ही सुनना।

जिंदगी की रात है अब ,
भोर का क्या मालूम
हो भी या नहीं।

भोर के तारे में
मेरा गीत ,
सुनाई दे तो सुन लेना।


Friday 9 September 2016

राह में ना मिला करो..

मन की उड़ान
रोके से नहीं रूकती
मुझसे तो

सामने मत
 आया करो
शिकायत है अगर
तुमको तो

गुम हुयी
पगडंडियों पर
क़दमों की रफ़्तार
रोके नहीं रुकती
मुझसे तो

राह में ना
मिला करो
शिकायत है अगर
तुमको तो..




Wednesday 10 August 2016

सूरज/ चाँद का तुमसे कोई रिश्ता है क्या !

कसमें ली जाती हैं
हर रोज़
तुम्हें न देखने की
न मिलने की
और तुम्हें ना
सोचने की भी....

रोज़ की ली हुई
कसमें
टूट जाती है
या
तोड़ दी जाती हैं.....

सुबह सूरज के
 उगने पर,
रात को चाँद के
आ जाने पर......

सूरज/ चाँद का
तुमसे कोई रिश्ता है क्या !
कि कसम ही टूट
जाती है !


Tuesday 2 August 2016

भेज दो उसी में से थोड़ा रंग


मन के  कैनवास की
तस्वीर के रंग
धुंधले हुए जाते हैं !

गडमगड हो गए हैं
वो सभी रंग,
 जो तुमने सजाए थे
तस्वीर बनाने में.....

कुछ खो गए,
कुछ धूमिल हो गए हैं
और
कुछ गुम हो गए हैं
तुम्हारी तरह ही
जो रंग दिए थे तुमने
संभाले रखने को....

मुझे याद है
कुछ रंग रह गया था
हथेलियों पर तुम्हारे भी...


तस्वीर अब
अगर बनेगी तो तुम्हारे ही रंगों से,

भेज दो उसी में से
थोड़ा रंग
अगर सहेज रखा हो तो ...






Tuesday 12 July 2016

मैं क्यों बताऊँ तुम्हें...

क्या तुम जानते हो ,
लिखने में
जो स्याही
लगती है,
वह कहाँ से आती है !

तुम नहीं जानते,
 शायद
या
जानते तो हो
लेकिन
जानना नहीं  चाहते !

 मैं क्यों
बताऊँ तुम्हें फिर !




Tuesday 7 June 2016

घर मेरा है बादलों के पार ....




दिन-रात
सुबह -शाम
भोर -साँझ
कुछ नहीं बदलते
दोनों समय का नारंगीपना.....

उजली दोपहर
अँधेरी काली आधी रात हो
सब चलता रहता है
अनवरत सा ....

सब कुछ
 वैसे ही रहता है
बदलता नहीं है !

किसी के ना होने
या
 होने से ....

फिर क्यों
भटकता है तेरा मन
बंजारा सा

दरवाजा बंद या
है खुला
क्यों झांक जाता है तू !

क्यों ढूंढ़ता है मुझे
गली-गली ,
नुक्कड़-नुक्कड़ !

यहाँ
मेरा कोई पता है ना
ना ही कोई ठिकाना ....

घर मेरा है
बादलों के पार !
मिलना है तो फैलाओ पर
भरो उड़ान,
चले आओ ....


Sunday 6 March 2016

खो गए हैं अब वो स्वप्निल से पल !

सभी कुछ तो है
अपनी - अपनी जगह ,
सूरज
चाँद
सितारे
बादल !

फिर !
क्या खोया है !

हाँ !
कुछ तो खोया है।

या
सच में ही खो गया है !

कुछ पल थे
ख़ुशी के ,
पाये भी नहीं थे 
कि
खो गए !

सपने से
दिखने वाले अब
दीखते हैं सपने में !


चमकते सितारों से
नज़र आते हैं बुझी राख से ....
खो गए हैं अब
वो स्वप्निल से पल !


Wednesday 24 February 2016

क्यूंकि तुम रेत पर कदमों के निशां जो छोड़ जाते हो !

 समुन्दर से
मन की लहरें
भागती है क्यूँ
बार -बार
किनारे की तरफ !

तम्हें तलाशती है !
सच में !
या
शायद उनको
मालूम है
तुम्हारा वहां आ जाना
बिन बताये
बिन आहट !

क्यूंकि  तुम
जाने - अनजाने में
रेत पर कदमों
के निशां
जो छोड़ जाते हो !


Wednesday 17 February 2016

कैसा ये खेल है सूत्रधार का ....

रंगमंच सी दुनिया है ,
सूत्रधार की कल्पना से परे !

पुरुषों के दो सर हैं 
और स्त्रियां हैं यहाँ
बिना सर की  !

बेटे के पिता का सर ,
बेटी के पिता से कितना भिन्न है !

एक बहन के भाई का सर भी
तो भिन्न है !
राह जाती किसी दूसरी
बहन के भाई से !

 देख कर अपनी 
सुविधा -सहूलियत 
पुरुष बदल लेते हैं अपने सर !

यहाँ स्त्रियां खुश रहती हैं
 इसी बात में ,
जन्म से ही बिना सर की हैं वे !
सिर नहीं है तभी तो 
कदम चलते हैं  उनके ,
जमे रहते हैं धरा पर !

कुछ स्त्रियां  हैं ,
जिनके उग आए हैं सर !
लेकिन घर की चार दीवारी के
 बाहर तक ही 
क्यूंकि
घर में प्रवेश मिलता है सिर्फ
बिना सर वाली स्त्रियों को ही..

कुछ ऐसे भी हैं
बिना सर के
वे न स्त्री है न पुरुष है !

नपुसंक है वे
आसुरी प्रवृत्ति रखते हैं  !
रोंदते हैं अपनी ही क्यारियों को
उजाड़ते हैं अपने ही आसरों को !

कैसा ये खेल है सूत्रधार का...
क्या वह भी मुस्कुराता है !

जब खेल देखता है
इन बदलते सिरों का ,
उगे सिरों को उतरने का ,
 अपने कदमों तले
रोंदते अपने ही सिरों को !

यह भी तो हो सकता है
पात्र अपने सूत्रधार की
 पटकथा से परे
अपनी मर्ज़ी के किरदार अदा करते हों !

और सूत्रधार ठगा सा,
हैरान सा
रह जाता है देखता !

















Saturday 13 February 2016

प्रेम की पराकाष्ठा है ...

मन भागता है
अनन्त  की ओर
अनदेखे -अनजाने
पथ की ओर
निर्वात की ओर !

देखता है
प्राणों का देह से
विलग होना
और
देखता है
देह को विदेह होते !

यह देह का
विदेह हो जाना
मन का अनन्त की ओर
भटकना ,
प्रेम की पराकाष्ठा है।
शायद !

Wednesday 3 February 2016

जब याद तुम्हें आऊं और तुम मुस्कुरा दो

जब तुम्हारी याद ही बन

कर रहना है तो


क्यूँ ना मधुर याद ही


बन कर रहूँ ..!


जब याद तुम्हें आऊं 

और तुम मुस्कुरा दो 

फिर क्यूँ न 

तुम्हरे होठो की मुस्कान

बन के ही रहूँ ...

मैं आंसूं बन के क्यूँ रहूँ 

कि  तुम मुझे याद करो 

और मैं 

तुम्हे आँखों ही से गिर पडूँ....

 मैं हूँ तुम्हारे साथ 

 आँखों में तुम्हारी  

चमक बन के 

आईना निहारो जब भी तुम 

और  मैं 


मधुर याद की तरह

तुम्हारे होठो पर मुस्कराहट बन

खिली रहूँ ...

Sunday 24 January 2016

किसको सुनाइए दर्द अपना...

बुझ गए 
रंगोलियों पर रखे दीप 
बिखर गए 
सारे रंग। 

अब बिखरी हैं 
मायूसियां 
दर्द 
कराहटें। 

किसको सुनाइए 
दर्द अपना,
जब टीसता हो 
हर किसी का 
दर्द अपना अपना। 

चुप्पी भी 
असहनीय, 
कहा भी जाये 
फिर क्या कहा जाये।

कहें भी किसे 
बनावटी चेहरे है,
मूरतें हैं पत्थर की। 


Sunday 17 January 2016

अब तुम मत आना..

तपते सहरा में
चली हूँ अकेली मैं, 
जब छाँव भरी बदली 
ढक ले मेरे राह  को
शीतल कर दे मेरी डगर,
तब तुम मत आना।  

अमावस की अँधेरी रातों में 
सहमती, भयभीत सी 
चली हूँ अकेली मैं 
जब तारे
चाँद से बन मेरा राह संवारे 
तब तुम मत आना। 

आना था तुमको 
बन मेरा पथ-प्रदर्शक 
जब थी मैं अकेली 
बेबस, निसहाय सी। 

चली  हूँ  खुद मैं 
अपने सहारे 
ढूंढे है खुद ही अपने राह,
लिए झूठी हमदर्दी 
मुस्काते हुए 
अब तुम मत आना। 




Thursday 7 January 2016

कहाँ और कब तक रहोगे तुम छुप कर

ख़ामोशी पसर सी गई
चहुँ ओर 
जैसे सागर किनारे की मिट्टी।

लहरें भी लौट जाती हैं
धीमे से छू कर
बिना कुछ कहे।

सूनापन नहीं है फिर भी
तुम्हारे खामोश रहने पर भी
क्यूंकि

खामोश कहाँ हैं हवाएँ
महकती जो है
तुम्हारे चुपके से आ जाने से।

कहाँ और कब तक रहोगे
तुम छुप कर
जाओगे किस हद तक
मिलूंगी तुम्हें
हर सरहद पर मैं।