दिन-रात
सुबह -शाम
भोर -साँझ
कुछ नहीं बदलते
दोनों समय का नारंगीपना.....
उजली दोपहर
अँधेरी काली आधी रात हो
सब चलता रहता है
अनवरत सा ....
सब कुछ
वैसे ही रहता है
बदलता नहीं है !
किसी के ना होने
या
होने से ....
फिर क्यों
भटकता है तेरा मन
बंजारा सा
दरवाजा बंद या
है खुला
क्यों झांक जाता है तू !
क्यों ढूंढ़ता है मुझे
गली-गली ,
नुक्कड़-नुक्कड़ !
यहाँ
मेरा कोई पता है ना
ना ही कोई ठिकाना ....
घर मेरा है
बादलों के पार !
मिलना है तो फैलाओ पर
भरो उड़ान,
चले आओ ....
फिर क्यों
ReplyDeleteभटकता है तेरा मन
बंजारा सा
उपासना जी बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
बदलता तो कुछ भी नहीं फिर भी इंसान है की उम्र ढलती है ...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut khoob..
ReplyDeletebahut khoob..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteअगर आप ऑनलाइन काम करके पैसे कमाना चाहते हो तो हमसे सम्पर्क करें हमारा मोबाइल नम्बर है +918017025376 ब्लॉगर्स कमाऐं एक महीनें में 1 लाख से ज्यादा or whatsap no.8017025376 write. ,, NAME'' send ..
ReplyDeletemind blowing.
ReplyDelete- khayalrakheplus.blogspot.in
I really enjoyed your blog thanks for sharing
ReplyDelete