Friday 28 June 2013

जब कटे हो मेरे अपने ही पंख ...


सुनो बेटी.........!
अब  मैं नहीं सुनूंगी 
 कोई भी पुकार -फरियाद
तुम्हारी
ना ही  पढूंगी अब मैं
 कोई भी पाती तुम्हारी ...

तुम्हें क्यूँ कर जन्म दूँ
जब मैंने ,
कोई भी - कभी भी
किया नहीं कोई प्रतिकार
अपने ही घर में
जब हुआ
किसी और स्त्री पर अत्याचार ...

बन रही मूक की भांति
बेजुबां
जबकि मेरे पास भी थी
एक जुबां ,
रही  मैं तब भी बन मूक
जब हुआ किसी परायी बेटी
पर अत्याचार ...

ना देख पाउंगी
 अब मैं तुम्हारे साथ
 कोई होते अत्याचार -दुराचार
अब मेरी "सोच की"  भी
आत्मा थर्राती है ...

तुम्हें
 खुला आसमान ,
मज़बूत धरती
देते हुए डर सताएगा
मुझे भी अब ,
क्यूंकि

 मैंने नहीं सिखाया तुम्हारे
भाइयों को स्त्री का आदर
करना ...!

 जब कटे हो
मेरे अपने ही पंख ,
जब बंद हूँ खुद ही पिछड़ी सोच के
पिंजरे में
नहीं दे सकती जब तुम्हें मैं एक
 खुला आसमान
तब तक तुम जन्म न ही लो ...




Wednesday 19 June 2013

धरा पर एक ही सत्य है बस ईश्वर का नाम ही ...

ना चाहो तो भी
उठ जाता है मन में
एक प्रश्न ,
एक नादान बालक की तरह ...

मन करता है
सामने खड़े हो जाएं
ईश्वर के
और मांगे उत्तर ...

जब टूटे घर -आशियाने
सभी के
बस एक तेरा घर ही
रहा सलामत ...

 तुझे क्या दर्द ना आया ...!
तेरी ही गोद में पनपे
रहे खेलते जो ,
मिल गए मिट्टी में ,
हुए धराशायी
बह गए पल भर में ...

रहा देखता तू बस
अपना ही घर बचाता ?
अब तुझे कौन जानेगा
कौन मानेगा ...?

लेकिन
प्रश्न है तो उत्तर भी तो है
ईश्वर
जो मंदिर में कम
 हृदय में अधिक बसता है ...

हृदय में भी उसे कहाँ
सुकून है लेकिन
पड़ा है एक कोने में
उपेक्षित सा ,
मंदिर की घंटी उसे मधुर कम
कर्कश ही लगती ...

कराह उठती ईश्वर की भी
आत्मा
रुदन कर पड़ता उसका भी
 हृदय ,
पत्थर के घरों में रहता
पाषण से हृदयों  में बसने
वाले का हृदय
नहीं है पाषाण  सा ...

फूट पड़ती है उसके हृदय से
दर्द की धारा
वही बन जाती धरा पर
प्रलय की धारा ...

बच जाना उसके घर का
है एक चेतावनी ,
एक सन्देश सभी को ,
धरा पर एक ही सत्य है
बस
 ईश्वर का नाम ही ...






Tuesday 18 June 2013

मरने से पहले कई-कई बार मरना क्यूँ ....

मर -मर के जीते है
 हम ,
हर रोज़
जीने के लिए ...

बस एक पल
जीने के लिए
ना जाने कितने
पल मरते हैं हम ...

 हुआ जब जन्म
तभी तय हुआ
मरने का दिन ,
तय नहीं जीने के दिन ...

ना जाने कितने
दिन है जीने के
यही सोच ,
हर दिन मरते हैं हम ...

कितने रंगों से सजा
ये जीवन
आशंकाओं के काले रंग
से रंगना क्यूँ ....

मरने से पहले
कई-कई बार मरना क्यूँ
जब तय है मरने का दिन ,
तो क्यूँ ना
हर पल -हर दिन जीवन का
भरपूर जियें हम ...

( चित्र गूगल से साभार )









Monday 17 June 2013

ਝੁਠੀ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਏਹ ਝੂਠੇ ਲੋਕ ....( झूठी दुनिया के झूठे लोग )

ਝੁੱਠੀ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਏਹ
ਝੁੱਟੇ ਲੋਕ 
ਬੁੱਲਾਂ ਤੇ ਮਿਠੇ ਬੋਲ ਤੇ 
ਦਿਲਾਂ ਚ ਖਾਰੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਖੂਹ ...

ਇਹ ਝੁੱਟੇ ਲੋਕ
ਝੁੱਟਾ ਹਾਸਾ  ਵਿਖਾ
ਲੋਕੀਆਂ ਨੁੰ
ਖਾਰੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਮੀਠਾ ਘੁਟ
ਪਿਆ  ਦਿੰਦੇ ਨੇ ...

ਇਹ ਝੁੱਟੇ ਲੋਕ
ਕਦੀ ਸਕੇ  ਨਾ  ਹੋ ਸਕਦੇ ,
ਬੁੱਕਲ  ਦੇ ਸੱਪ  ਵ੍ਹਾੰਗ
ਦੰਗਦੇ ਰਹਿੰਦੇ  ...

  ਇੰਜ ਦੰਗਦੇ ਇਹ ਝੂਠੇ  ਲੋਕ
ਜਾਣ ਵੀ ਕੱਡ ਲੇਣ
ਤੇ ਆਹ ਵੀ
ਨਾ ਕਰਨ ਦੇਣ ...

ਇਹ ਝੁੱਟੇ ਲੋਕ
ਸਾਡੇ ਆਸੇ-ਪਾਸੇ ਹੀ ਤਾਂ
ਹੁੰਦੇ ਨੇ
ਬੁੱਲਾਂ ਤੇ ਮੀਠੀ ਬੋਲੀ ਤੇ
ਦਿਲਾਂ ਚ ਖੜੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਖੂਹ ਲੇ ਕੇ ...
...........................................................................................................
( हिंदी अनुवाद )
.............................
झूठी दुनिया के
झूठे लोग
होठों पर मीठी बोली
और दिलों में खारे पानी के कुएं ...

ये झूठे लोग
झूठी हँसी दिखा कर
खारे पानी का मीठा घूंट
पिला देते हैं ...

ये झूठे  लोग
कभी सगे ना हो सकते
आस्तीन के सांप की तरह
डंक मारते हैं ...

इस तरह डंक मारते
ये झूठे लोग ,
जान भी निकालते हैं और
आह भी नहीं निकलने देते ...

ये झूठे लोग
आस -पास ही तो होते हैं
होठों पर मीठी बोली और
दिलों में खारे पानी के कुए लिए ...

( चित्र गूगल से साभार )


Tuesday 11 June 2013

तेरा नाम गुनगुनाने की चोरी तो करते हैं अभी भी ...


तुझसे ना मिलने की
कसम खाई थी कभी ,
पर ख्वाबों में मिलने की
 चोरी तो करते हैं
अभी भी ...

खुद को चार दीवारी में
रखने की कसम
खाई थी कभी ,
पर  दीवार की
  खिड़की से  तुझे
ताकने की चोरी तो करते हैं
अभी भी ...

तेरा नाम भी जुबां पर
 ना लाने की कसम
खाई थी कभी ,
पर गीतों के बहाने
तेरा नाम गुनगुनाने
की चोरी तो करते हैं
अभी भी ...

Wednesday 5 June 2013

पश्चाताप ....

लाचार, बेबस, कृशकाय ,
जर्जर वृद्ध ,
अपनी अवस्था को
झेलता ...

अपने कमरे की
धुंधली रौशनी में
अपने अंदर छाये
घने अँधेरे में एक प्यार
की किरण तलाशता ...

बाहर से उठती
तेज़ आवाजों में
पानी के लिए तरसती
अपनी आवाज़ को
को कहीं खोता ...

बिस्तर से उठने की
नाकाम
कोशिश करता
अचानक हूक सी उठी
दिल में
बद-दुआ सी जागी मन
में ...


बरबस
दीवार पर धूल जमी
अपने बाबूजी की तस्वीर
में से झांकती ,व्यंग से
चमकती आँखे देख
दिल
शर्म ,पश्चाताप ,
आँखे दुख
के आंसुओं से भर आयी ...

Monday 3 June 2013

जिन्दगी की किताब ...

जिन्दगी की किताब
खोल कर जो देखी
तो ना जाने
कितनी यादों के
सूखे फूल 
महकते नज़र आये ...
कुछ पन्ने
आसमानी
नज़र आये तो 
कुछ हल्के गुलाबी ...

 जो पन्ने
कभी खोल कर  भी नहीं देखे
अब वो 
बैंगनी नज़र आये ...

झिलमिलाते पन्नों को
 पलटा तो कुछ 
सितारे बिखरे हुए से दिखे ,
वो सितारे उठा कर
मैंने आपने दामन 
में टांक लिए ...

जिन्दगी की किताब
को पढ़ा,
 पर उठा कर 
फिर से ताक पर नहीं रखा ...

अब इस किताब को
साथ-साथ पढना और 
जीना चाहती हूँ ,
फिर से यादों के फूलों
को सूखने नहीं देना 
चाहती .........

Sunday 2 June 2013

क्यूंकि तुम प्रेम हो और प्रेम मैं भी हूँ .....

मैं प्रेम हूँ
और
तुम भी तो प्रेम ही हो।
प्रेम से अलग
 क्या नाम दूँ
तुम्हें भी और मुझे भी ...

कितनी सदियों से
और जन्मो से भी
हम साथ है
जुड़े हुए एक-दूसरे के
प्रेम में।

दिखावे की है लेकिन ये
समानांतर रेखाए
प्रेम ने तो अब भी बांधा
हुआ है
तुम्हें  भी और मुझे  भी।

क्यूंकि तुम प्रेम हो और
प्रेम मैं भी हूँ .......