सुनो बेटी.........!
अब मैं नहीं सुनूंगी
कोई भी पुकार -फरियाद
तुम्हारी
ना ही पढूंगी अब मैं
कोई भी पाती तुम्हारी ...
तुम्हें क्यूँ कर जन्म दूँ
जब मैंने ,
कोई भी - कभी भी
किया नहीं कोई प्रतिकार
अपने ही घर में
जब हुआ
किसी और स्त्री पर अत्याचार ...
बन रही मूक की भांति
बेजुबां
जबकि मेरे पास भी थी
एक जुबां ,
रही मैं तब भी बन मूक
जब हुआ किसी परायी बेटी
पर अत्याचार ...
ना देख पाउंगी
अब मैं तुम्हारे साथ
कोई होते अत्याचार -दुराचार
अब मेरी "सोच की" भी
आत्मा थर्राती है ...
तुम्हें
खुला आसमान ,
मज़बूत धरती
देते हुए डर सताएगा
मुझे भी अब ,
क्यूंकि
मैंने नहीं सिखाया तुम्हारे
भाइयों को स्त्री का आदर
करना ...!
जब कटे हो
मेरे अपने ही पंख ,
जब बंद हूँ खुद ही पिछड़ी सोच के
पिंजरे में
नहीं दे सकती जब तुम्हें मैं एक
खुला आसमान
तब तक तुम जन्म न ही लो ...
बहुत ही मार्मिक रचना ,भावपूर्ण ………एक सुन्दर रचना के लिये आपका शुक्रिया बहिन जी …
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ,आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
बहुत ही मार्मिक रचना सुंदर अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteप्रत्येक पुत्री प्रिय मात-पिता के मन के दर्द की सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर ओर सही बात ओर शीर्षक भी सार्थक ...बधाई उपासना सखी
ReplyDeleteइसकी कविता का दूसरा हिस्सा आना जरूरी है। स्त्री विमर्श से चेतित हो गई है और कह रही है कि 'अब तुम जन्म ले ही लो।'
ReplyDeleteमुझे इस कविता का इंतजार रहेगा कारण आने वाले को नकारने का अधिकार हमें है नहीं। जिसको आप नकार रही है कविता में उसका आना जरूरी है। साथ ही जिंदा मांस बनी स्त्री के होंठ भी खुलने चाहिए मांगे और अधिकार के लिए भी।
मार्मिक रचना
ReplyDelete' जब बंद हूँ पिछड़ी सोच के पिंजरे में ' ,
ReplyDeleteसच है , उपासना .....
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-06-2013) के चर्चा मंच 1292 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteकटु सत्य बताती मार्मिक रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक सन्देश देने का सफल प्रयोग है यह कविता, हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
ReplyDeleteमार्मिक सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteमार्मिक भाव पूर्ण रचना बधाई
ReplyDeleteमार्मिक, सुन्दर और सार्थक रचना.
ReplyDeletelatest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
आपकी पोस्ट को आज के बुलेटिन चवन्नी की विदाई के दो साल .... ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ...आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
jab mere hi pankh kate hon....behud sarthak rachna..
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteka rva sach bayan kiya aapne .
ReplyDeletekripya mere blog par bhi padhare.