मैं प्रेम हूँ
और
तुम भी तो प्रेम ही हो।
प्रेम से अलग
क्या नाम दूँ
तुम्हें भी और मुझे भी ...
कितनी सदियों से
और जन्मो से भी
हम साथ है
जुड़े हुए एक-दूसरे के
प्रेम में।
दिखावे की है लेकिन ये
समानांतर रेखाए
प्रेम ने तो अब भी बांधा
हुआ है
तुम्हें भी और मुझे भी।
क्यूंकि तुम प्रेम हो और
प्रेम मैं भी हूँ .......
और
तुम भी तो प्रेम ही हो।
प्रेम से अलग
क्या नाम दूँ
तुम्हें भी और मुझे भी ...
कितनी सदियों से
और जन्मो से भी
हम साथ है
जुड़े हुए एक-दूसरे के
प्रेम में।
दिखावे की है लेकिन ये
समानांतर रेखाए
प्रेम ने तो अब भी बांधा
हुआ है
तुम्हें भी और मुझे भी।
क्यूंकि तुम प्रेम हो और
प्रेम मैं भी हूँ .......
Kyuki tum prem ho mai bhi prem....wow bahut sunder rachna...upasna..
ReplyDeleteक्यूंकि.....
ReplyDeleteतुम प्रेम हो....
और प्रेम......
मैं भी हूँ .......
भाव प्रधान रचना
अच्छी लगी
सादर
बहुत सुंदर और अद्भुत प्रेम ...
ReplyDeleteप्रेम के अप्रतिम सौन्दर्य से छलकती रचना
ReplyDeleteप्रेम की पराकास्था ,प्रेम का नाम सिर्फ प्रेम
ReplyDeleteअद्भुत प्रेम की पराकाष्ठा..सुंदर रचना ,,,
ReplyDeleterecent post : ऐसी गजल गाता नही,
प्रेम ही सत्यहै --सत्य ही ईश्वर है --इसलिए प्रेम ही ईश्वर है ----प्रश्नों का ऊत्तर है ---ऐसा बंधन जो मुक्त करता है
ReplyDeleteप्रेम ही सत्यहै --सत्य ही ईश्वर है --इसलिए प्रेम ही ईश्वर है ----प्रश्नों का ऊत्तर है ---ऐसा बंधन जो मुक्त करता है
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति .बधाई . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
सत्य ही ईश्वर है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..बधाई..उपासना जी..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्रेम ही सत्य है-सुन्दर प्रस्तुति .बधाई
ReplyDeleteLATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
latest post बादल तु जल्दी आना रे (भाग २)
कोमल भाव लिए बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteBahut sundar rachna . Badhai ,,,, shaswat
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर.....
अनु