Saturday 17 November 2012

तेरी शक्ति तुझी में निहित है ....

कहाँ भटकती है तू
बन-बन
कस्तूरी मृग की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझ में ही
निहित ...

एक बार सर तो उठा
आसमान खुला है तेरे लिए भी
एक बार बाहें तो फैला
भर ले आसमान ,
इनमे ...

एक बार आवाज़ उठा के तो
 देख ,
देख तो सही  एक आवाज़ पर
कितने हौसले बुलंद हो उठेंगे
कितने ही कदम तेरे साथ
बढ़ चलेंगे ...
मत भटक किसी मसीहा की
तलाश में
ना भ्रम रख किसी के
आने का ...

मत भटक तू  कस्तुरी मृग
की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझी में
निहित  ...


Friday 16 November 2012

करैक्टर लेस..


सुना है वह आजकल
बहुत गुनगुनाती है 
हंसती भी बहुत है ....

सुना है वह
उडती तितलियों को
पकड़ने दौड़ पडती है
नंगे  पाँव ही ...

सुना है उसे
अब देहरी लांघने से
भी संकोच नहीं होता ...

सुना है वह
अपने फैसले खुद ही
लेने लगी है ......

सुना है वह अब
सजी संवरी गुडिया या
कठपुतली की तरह
अपने सूत्रधारों के
वश में नहीं रहती ........

सुना तो बहुत  कुछ है
 वह आज-कल
'करैक्टर लेस' हो गयी है ....

 शब्दों को
कानो में  पिघले शीशे की
तरह सहन करती
मुस्करा पड़ती है  वह .........

इस रंग बदली दुनिया में
 ' करेक्टर - लेस ' हो
या
करेक्टर से " लैस "........
बस सुना ही करती है वह ....

सरहद और नारी मन

सरहद पर जब भी
युद्ध का बिगुल बजता है
मेरे हाथ प्रार्थना के लिए
जुड़ जाते हैं
दुआ के लिए भी उठ जाते हैं
सीने पर क्रोस   भी बनाने
 लग जाती हूँ ......
मेरे मन में बस  होती है
एक ही बात
सलामत रहे मेरा अपना
जो सरहद पर गया है ,
लौट आये वह फिर से
यही दुआ होती है मेरे मन में ....
मैं कौन हूँ उसकी ...!
कोई भी हो सकती हूँ मैं
एक माँ
बहन ,पत्नी
या बेटी
उसकी जो सरहद पर गया है ......
इससे भी क्या फर्क पड़ता है
मैं कहाँ रहती हूँ
सरहद के इस पार हूँ या
उस पार ......
दर्द तो एक जैसा ही है मेरा
भावना भी एक जैसी ही है .......
हूँ तो एक औरत ही न ...!

Wednesday 14 November 2012

ना जाने क्यूँ ..........

ना जाने कैसा बोझ है
जो सीने पर लिए
घूमा  करती हूँ ......
मुस्कराते चेहरों के पीछे
एक दर्द को तलाशती
रहती हूँ
ना जाने क्यूँ मुझे मुस्कराहटों
के पीछे कराहटें ही
सुनायी देती है ...
कुछ उलझने ,सुलझने की
बजाय और
उलझती ही क्यूँ नज़र आती है ...
यह कैसे मृगमरीचिका है
जिसकी तलाश में भटकी सी
फिरती हूँ .......
दोस्तों के चेहरों में
 ना जाने क्यूँ
दुश्मन नज़र आने लगते हैं ......
क्यूँ चेहरों के पीछे के चेहरों को
पहचानने  की कोशिश करती
रहती हूँ
जब की उतरते मुखौटे मुझे ही
डराते हैं ...
ना जाने क्यूँ
मैं भ्रम  में जीना ही नहीं चाहती ........
जब के कभी-कभी सच डरा भी
दिया करता है ...
फिर भी एक बोझ सा ही लिए घूमा
करती हूँ सीने पर
ना जाने क्यूँ ..........

Friday 9 November 2012

मैं एक बार फिर से हरी हो जाती हूँ .....


तेरे  ख्याल
तेरा जिक्र
तेरे ख्वाब
तेरी छुअन,
 अपने भीतर
कहीं न कहीं
महसूस करती हूँ
मैं अब भी ........
यह छुअन ,
यह अहसास
मुझे बता जाता है
के तुम
अब भी मेरे अंतर्मन में
बसते हो
 कहीं न कहीं ........
और मैं ,
एक बार फिर से
हरी
 हो जाती हूँ .....


Thursday 8 November 2012

एक औरत की वसीयत...

सोचती है एक औरत ,
जब वसीयत लिखने की ......

और सोचती है
उसकी क्या है विरासत
और क्या दे कर जाना है
उसको इस दुनिया को ...

जब उसका अपना कहने
को कुछ है ही नहीं ......
ना जमीन ना ही कोई
जायदाद ....

एक बोझ की तरह पैदा
होकर दुसरे पर भी बोझ
की तरह लादी गयी ,
एक औरत के पास
विरासत में छोड़ जाने को
क्या होगा भला ...!

कलम को अपने होठों में
दबा , वह मुस्कुरा पड़ती है ..

इस मुस्कुराहट में बहुत
कुछ होता है ,
कुछ समझ में आता है तो
कुछ समझना नहीं चाहती
और गहराती मुस्कुराहट
बहुत कुछ समझा भी जाती है ...

लेकिन . फिर भी वह
वसीयत तो करना चाहती ही है ...
वह चाहती है ...

जो आंसू , कराहटें , मायूसियाँ
उसने जीवन भर झेली ,
उनको कहीं दूर गहरे गड्ढे में दफना
दिया जाए या
किसी गहरे सागर में ही बहा दिया
जाए ....

वह नहीं चाहती उसकी आने वाली
पीढ़ी को यह सब एक बार फिर से
विरासत में मिले ...
.
वह सिर्फ और सिर्फ आत्मविश्वास
को अपनी विरासत में देकर जाना
चाहती है
क्यूँ की वही उसकी जीवन भर की
जमा -पूंजी है .......







Wednesday 7 November 2012

दीये बेचने वाली का बेटा


बाहर से किसी ने पुकारा तो देखा 
दीये बेचने वाली का बेटा खड़ा था ,
देख कर मुस्काया,
दीवे नहीं लेने क्या 
बीबी जी ...........
मैंने भी उसकी भोली मुस्कान का 
जवाब मुस्कान से दिया,
 लेने है भई,
पर तेरी माँ क्यूँ नहीं आयी .....
माँ तो  अस्पताल में भर्ती है बीबी जी ,
ओह ,मैंने कहा,
और  साथ में तेरा भाई है ये ................
नहीं मेरी छोटी बहन है ये ......
अच्छा तू कितने साल का है ,
कौनसी में पढता है ,
तेरे पिता कहाँ है ,
और तुम दो ही भाई -बहन हो क्या .........
एक सांस में कई सवाल पूछ लिए ,
वो एक जिम्मेदार बेटा -भाई बन कर 
बोला ,
मैं आठवीं पास हूँ और पन्द्रह 
वर्ष का हूँ ,
हम तीन भाई -बहन है 
एक दीदी है जो ससुराल में है ,उसके 
बेटा हुआ है .........
पिता जी कुछ भी नहीं करते, कई 
वर्षों से नशा करते थे .......
मैंने कुछ बुरा सा मुहं बनाया तो 
बोला
नहीं बीबी जी ...!
 अब तो वह लाचार सा है ,
कई बार तो खाना 
भी नहीं खाया जाता उससे ..
ऐसे पिता के लिए भी उसके मन 
में इतनी श्रद्धा,...!!
मेरा मन भीग सा गया ,
वो बोले जा रहा था .......
दीदी को भी त्यौहार पर कुछ देना  है ,
माँ अगर ठीक होती तो पैसे ज्यादा बन जाते 
पर अब जैसे भी बनेगा कुछ तो करूँगा ही ,
और मैं बस उसके भोले मुख को देखती हुयी 
उसकी बातें सुनती जा रही थी ........
मैंने दीये लेकर रुपयों के साथ एक -एक 
सेव पकडाया और उन दोनों को जाते 
देखती रही ........
कि ये कौन है
 पंद्रह वर्ष का बालक ,या
 अपनी बहनों की जिम्मेदारी उठाता
 नव -जवान या 
अपने बीमार  माता -पिता की भी 
जिम्मेदारी उठता प्रोढ़ ...............!!