Friday 28 December 2012

तुम्हारा साथ .....


तुम्हारे साथ चला  नहीं जाता 
नहीं सहन होती अब मुझसे 
तुम्हारी बेरुखी .......

ये बेरुखी मुझे लहुलुहान  किये
 दे रही है ,
कब तक पुकारूँ तुम्हें ,
जब हो मेरी हर पुकार ही अनसुनी ...

 नहीं पुकारुगी तुम्हे  
ना ही मुड़ ,थाम कर कदम देखूंगी ,
तुम्हारी तरफ कातर निगाहों से ......

तोड़ डाले हैं सारे तार 
जो तुम संग  जोड़े थे कभी 
हर वह बात ,जो तुमसे जुडी थी ..........

यह जुडाव भी तो मेरा ही था 
तुम थे ही कब मेरे ,
कब चले थे साथ मेरे ...

कुछ गीले क़दमों से साथ चले 
और मैं साथ समझ बैठी ..
वो क़दमों का गीला पन तो कब का 
धूप में  घुल गया
मैं तलाशती रही वो कदमो के निशाँ .......   

 एक आस ,एक उम्मीद  
जो तुमसे लगा कर रखी थी मैंने ,
जाओ आज मुक्त कर दिया तुम्हे 
और मैं भी मुक्त ही हो गयी 
तुम्हारी यादों से ,
तुम्हारे झूठे वादों से .....

Friday 21 December 2012

एक गृहिणी.......

एक गृहिणी
जब कलम उठाती है ...
लिखती है वह
खिलते फूलों पर
उगते सूरज पर
नन्ही किलकारियों पर
मासूम मुस्कानों पर ...


वह लिखती है
ममता की स्याही में
कलम को डुबो कर ....

 लेखनी में उसकी
उमड़ पड़ता है ढेर सारा
प्यार , दुलार और
बहुत सारा स्नेह ,
सारी  प्रकृति खिल उठती है ....

एक गृहिणी ,
एक नारी भी है
एक माँ भी है ......

क्या लिखे वह अपनी
 कलम से
दूसरी नारी की व्यथा
एक बेटी की दुर्दशा ...!

नहीं ,वह उठा ही नहीं
 पाती कलम
दर्द की स्याही से
' स्याह ' अक्षर नहीं लिख पाती ...






Tuesday 4 December 2012

कुछ तैयारियां ...

पुरानी किताबें सहेजते 
अटक गयी नज़रे 
दिख गयी वही लाल -डायरी 
जिसमे लिखा था मैंने 
मुझी पर की गयी 
शिकायते ,
लानते ,
कुछ उलाहने 
मेरे पिता की मजबूरियों ,
मेरे निकम्मेपन पर 
की गयी टीका - टिप्पणियां ..
आज उन सबकी
समीक्षा कर डाली गयी
सभी बातों को
जहन में नोट कर लिया गया ...
जवान होते बेटे को देख
कुछ तैयारियां
मैंने भी कर डाली ...

Saturday 17 November 2012

तेरी शक्ति तुझी में निहित है ....

कहाँ भटकती है तू
बन-बन
कस्तूरी मृग की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझ में ही
निहित ...

एक बार सर तो उठा
आसमान खुला है तेरे लिए भी
एक बार बाहें तो फैला
भर ले आसमान ,
इनमे ...

एक बार आवाज़ उठा के तो
 देख ,
देख तो सही  एक आवाज़ पर
कितने हौसले बुलंद हो उठेंगे
कितने ही कदम तेरे साथ
बढ़ चलेंगे ...
मत भटक किसी मसीहा की
तलाश में
ना भ्रम रख किसी के
आने का ...

मत भटक तू  कस्तुरी मृग
की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझी में
निहित  ...


Friday 16 November 2012

करैक्टर लेस..


सुना है वह आजकल
बहुत गुनगुनाती है 
हंसती भी बहुत है ....

सुना है वह
उडती तितलियों को
पकड़ने दौड़ पडती है
नंगे  पाँव ही ...

सुना है उसे
अब देहरी लांघने से
भी संकोच नहीं होता ...

सुना है वह
अपने फैसले खुद ही
लेने लगी है ......

सुना है वह अब
सजी संवरी गुडिया या
कठपुतली की तरह
अपने सूत्रधारों के
वश में नहीं रहती ........

सुना तो बहुत  कुछ है
 वह आज-कल
'करैक्टर लेस' हो गयी है ....

 शब्दों को
कानो में  पिघले शीशे की
तरह सहन करती
मुस्करा पड़ती है  वह .........

इस रंग बदली दुनिया में
 ' करेक्टर - लेस ' हो
या
करेक्टर से " लैस "........
बस सुना ही करती है वह ....

सरहद और नारी मन

सरहद पर जब भी
युद्ध का बिगुल बजता है
मेरे हाथ प्रार्थना के लिए
जुड़ जाते हैं
दुआ के लिए भी उठ जाते हैं
सीने पर क्रोस   भी बनाने
 लग जाती हूँ ......
मेरे मन में बस  होती है
एक ही बात
सलामत रहे मेरा अपना
जो सरहद पर गया है ,
लौट आये वह फिर से
यही दुआ होती है मेरे मन में ....
मैं कौन हूँ उसकी ...!
कोई भी हो सकती हूँ मैं
एक माँ
बहन ,पत्नी
या बेटी
उसकी जो सरहद पर गया है ......
इससे भी क्या फर्क पड़ता है
मैं कहाँ रहती हूँ
सरहद के इस पार हूँ या
उस पार ......
दर्द तो एक जैसा ही है मेरा
भावना भी एक जैसी ही है .......
हूँ तो एक औरत ही न ...!

Wednesday 14 November 2012

ना जाने क्यूँ ..........

ना जाने कैसा बोझ है
जो सीने पर लिए
घूमा  करती हूँ ......
मुस्कराते चेहरों के पीछे
एक दर्द को तलाशती
रहती हूँ
ना जाने क्यूँ मुझे मुस्कराहटों
के पीछे कराहटें ही
सुनायी देती है ...
कुछ उलझने ,सुलझने की
बजाय और
उलझती ही क्यूँ नज़र आती है ...
यह कैसे मृगमरीचिका है
जिसकी तलाश में भटकी सी
फिरती हूँ .......
दोस्तों के चेहरों में
 ना जाने क्यूँ
दुश्मन नज़र आने लगते हैं ......
क्यूँ चेहरों के पीछे के चेहरों को
पहचानने  की कोशिश करती
रहती हूँ
जब की उतरते मुखौटे मुझे ही
डराते हैं ...
ना जाने क्यूँ
मैं भ्रम  में जीना ही नहीं चाहती ........
जब के कभी-कभी सच डरा भी
दिया करता है ...
फिर भी एक बोझ सा ही लिए घूमा
करती हूँ सीने पर
ना जाने क्यूँ ..........

Friday 9 November 2012

मैं एक बार फिर से हरी हो जाती हूँ .....


तेरे  ख्याल
तेरा जिक्र
तेरे ख्वाब
तेरी छुअन,
 अपने भीतर
कहीं न कहीं
महसूस करती हूँ
मैं अब भी ........
यह छुअन ,
यह अहसास
मुझे बता जाता है
के तुम
अब भी मेरे अंतर्मन में
बसते हो
 कहीं न कहीं ........
और मैं ,
एक बार फिर से
हरी
 हो जाती हूँ .....


Thursday 8 November 2012

एक औरत की वसीयत...

सोचती है एक औरत ,
जब वसीयत लिखने की ......

और सोचती है
उसकी क्या है विरासत
और क्या दे कर जाना है
उसको इस दुनिया को ...

जब उसका अपना कहने
को कुछ है ही नहीं ......
ना जमीन ना ही कोई
जायदाद ....

एक बोझ की तरह पैदा
होकर दुसरे पर भी बोझ
की तरह लादी गयी ,
एक औरत के पास
विरासत में छोड़ जाने को
क्या होगा भला ...!

कलम को अपने होठों में
दबा , वह मुस्कुरा पड़ती है ..

इस मुस्कुराहट में बहुत
कुछ होता है ,
कुछ समझ में आता है तो
कुछ समझना नहीं चाहती
और गहराती मुस्कुराहट
बहुत कुछ समझा भी जाती है ...

लेकिन . फिर भी वह
वसीयत तो करना चाहती ही है ...
वह चाहती है ...

जो आंसू , कराहटें , मायूसियाँ
उसने जीवन भर झेली ,
उनको कहीं दूर गहरे गड्ढे में दफना
दिया जाए या
किसी गहरे सागर में ही बहा दिया
जाए ....

वह नहीं चाहती उसकी आने वाली
पीढ़ी को यह सब एक बार फिर से
विरासत में मिले ...
.
वह सिर्फ और सिर्फ आत्मविश्वास
को अपनी विरासत में देकर जाना
चाहती है
क्यूँ की वही उसकी जीवन भर की
जमा -पूंजी है .......







Wednesday 7 November 2012

दीये बेचने वाली का बेटा


बाहर से किसी ने पुकारा तो देखा 
दीये बेचने वाली का बेटा खड़ा था ,
देख कर मुस्काया,
दीवे नहीं लेने क्या 
बीबी जी ...........
मैंने भी उसकी भोली मुस्कान का 
जवाब मुस्कान से दिया,
 लेने है भई,
पर तेरी माँ क्यूँ नहीं आयी .....
माँ तो  अस्पताल में भर्ती है बीबी जी ,
ओह ,मैंने कहा,
और  साथ में तेरा भाई है ये ................
नहीं मेरी छोटी बहन है ये ......
अच्छा तू कितने साल का है ,
कौनसी में पढता है ,
तेरे पिता कहाँ है ,
और तुम दो ही भाई -बहन हो क्या .........
एक सांस में कई सवाल पूछ लिए ,
वो एक जिम्मेदार बेटा -भाई बन कर 
बोला ,
मैं आठवीं पास हूँ और पन्द्रह 
वर्ष का हूँ ,
हम तीन भाई -बहन है 
एक दीदी है जो ससुराल में है ,उसके 
बेटा हुआ है .........
पिता जी कुछ भी नहीं करते, कई 
वर्षों से नशा करते थे .......
मैंने कुछ बुरा सा मुहं बनाया तो 
बोला
नहीं बीबी जी ...!
 अब तो वह लाचार सा है ,
कई बार तो खाना 
भी नहीं खाया जाता उससे ..
ऐसे पिता के लिए भी उसके मन 
में इतनी श्रद्धा,...!!
मेरा मन भीग सा गया ,
वो बोले जा रहा था .......
दीदी को भी त्यौहार पर कुछ देना  है ,
माँ अगर ठीक होती तो पैसे ज्यादा बन जाते 
पर अब जैसे भी बनेगा कुछ तो करूँगा ही ,
और मैं बस उसके भोले मुख को देखती हुयी 
उसकी बातें सुनती जा रही थी ........
मैंने दीये लेकर रुपयों के साथ एक -एक 
सेव पकडाया और उन दोनों को जाते 
देखती रही ........
कि ये कौन है
 पंद्रह वर्ष का बालक ,या
 अपनी बहनों की जिम्मेदारी उठाता
 नव -जवान या 
अपने बीमार  माता -पिता की भी 
जिम्मेदारी उठता प्रोढ़ ...............!!


Wednesday 31 October 2012

नन्हा

मैं छोटा सा ,नन्हा सा

और माँ कहती है

कि प्यारा सा ,

एक बच्चा हूँ....

प्यारा सा बच्चा

हूँ ......फिर भी

माँ स्कूल के

लिए जल्दी

जगा कर तैयार

करती .....

पता नहीं ये स्कूल

किसने बनाया होगा ...

मुझे तो कुछ भी

समझ आता

उससे पहले ही

टीचर जी लिखा

मिटा देती है ....

अब लिखा नहीं तो

कान भी मरोड़

देती है ....
अब लाल - लाल

कान लेकर घर

जाता हूँ तो ...

माँ आंसू भर के

गले लगा कर डांटती

है तो मुझे

अच्छा लगता है क्या ....

जब मैंने माँ को बताया ,

आज नालायक बच्चों

को एक तरफ बिठाया

उनमें से मैं भी एक था ...

पूछ बैठा कि माँ

यह नालायक क्या होता है ...

तो बस, माँ रो ही पड़ी ,

गले से लगा कर बोली

तुझे कहने वाले ही है रे

मेरे लाल ......

मैं अब भी नहीं समझा कि

टीचर जी ने ऐसा क्यूँ कहा..

Thursday 25 October 2012

कान्हा वंशी फिर से बजा दो ...

कान्हा एक बार 
वंशी फिर से बजा दो ...
वह धुन छेड़ो ,
जिसे सुन कर 
हर कोई मंत्रमुग्ध सा 
हो रहे ...
किसी को कोई सुध-बुध
ही ना रहे ....
इस धरा का कण- कण ,
तुम्हारी वंशी की तान में
मोहित सा,
मंत्रमुग्ध हो रहे...
ऐसी ही कोई तान छेड़ो .
कान्हा ...!
मैं चली आऊं,
तुम्हारी वंशी की मधुर तान
की लय पर बहती हुयी .....

Monday 22 October 2012

लेकिन वे फिर भी मुस्कुराती है ....


औरतें कभी भी और
किसी को भी
 नहीं लगती अच्छी
जब वे मुस्कुराती है ,
हंसती है ,
या खिलखिलाती है ......

लेकिन वे फिर भी मुस्कुराती है ....

जब, बचपन में
उनका खिलौना छीन कर
किसी और को दे दिया
जाता है
या उनको कमतर आँका
जाता है .......

और जब
उनके बढ़ते कदमो को
बाँध लिया  जाता लिया हो
या आसमान छूने की
तमन्ना के पर काट दिए जाते हों....

और
जब उनकी जड़ें एक आंगन
से दूसरे आंगन में रोप दी
जाती है ...चाहे
उस आँगन में उसे
गर्म हवाओं के थपेड़े ही
क्यों न सहन करना पड़े...

तब भी वे मुस्कुराती  ही है
क्यूंकि
उन्हें पता है उनके आंसूं जब
निकलेंगे तो
एक सैलाब जैसा ही कुछ
आ जाएगा इस धरा पर ......

अपने इन आंसुओं को
अपनी आँखों में ही छुपा कर
बस मुस्कुराती है ,
खिलखिलाती है .....

क्यूंकि नहीं अच्छी लगती
औरते कभी भी
मुस्कुराती हुई  ..........

Tuesday 16 October 2012

रंग


दो कजरारी आंखे 
झपकाते हुए ,
सागर की  सी गहराई लिए 
आँखों से ...

मैं अक्सर 

तुम्हारी तस्वीर में
अपने रंग खोजती हूँ ,
जो रंग 

 कभी मैंने तुम्हें दिए थे ,
उनका क्या हुआ ...


सागर की सी गहराई लिए 
दो आँखे ,
 
कजरारी आँखों को 
एक टक देखते हुए ...

हाँ वो रंग,
 अभी भी मेरे पास है और 
बहुत प्रिय भी 

उन रंगों को  चाह कर 
भी मेरे जीवन 
के केनवास पर नहीं 

उतार पाता...

 मैंने वो  रंग 
अपने मन के कैनवास पर 
सजा रखे है 
कजरारी आँखें बरस पड़ी 
सागर सी गहराई वाली
 आँखों की गहराई 
कुछ और गहरी हो गयी ....

Friday 12 October 2012

अस्थि कलश


गंगा की लहरों पर तैरते
 अस्थि कलश
 को देख सहसा मन में
 विचार उमड़ पड़ते हैं ..

कैसे एक भरा - पूरा इन्सान
अस्थियों में बदल कर
एक छोटे से कलश में समा
जाता है ...

ना जाने ये किस की अस्थियाँ 

किसी वृद्ध / वृद्धा की ही हों ये अस्थियाँ ...
ना जाने उनके अरमान पूरे हुए भी
होंगे या नहीं ...
न जाने कुछ हसरत लिए भी उठ गए हों
 इस  दुनिया से ...

या फिर..!
 ये अस्थियाँ  किसी माँ की ही हो ,
अपने नन्हों को जब बिलखते देखा होगा
उसके प्राण एक बार फिर से
 देह पर न मंडराए  होंगे ... ! 
 छू कर देखोगे ये अस्थियाँ , 
 गीली ही मिलेगी , रोती - बिलखती
ममता से सराबोर ...

ये भी हो ...!
ये अस्थियाँ एक पिता की ही हो ,
जो बहुत मजबूर होकर
 इस दुनिया से गया हो ,
उस ने कब चाहा होगा, 
अपने नन्हों के ,
नन्हे-नन्हे कन्धों को  जिम्मेदारियों
के बोझ से लादना...

अब तो सोच कर ही आत्मा काँप
उठती है ....
ना जाने ये अस्थियाँ किसी अधखिले
फूल / कलि की ही ना हो ...
इनके अपनों ने ,
कैसे सहन किया होगा इनका बिछोह ,
क्या वो अब भी तड़प ना रहे होंगे ...

गंगा की लहरों पर तैरता
 यह अस्थि कलश  ना जाने किस की
आत्मा को मोक्ष दिलवाने जा रहा है ...
और
जिसकी अस्थियाँ इस कलश में है ,
उसके अपनों को मोक्ष कहाँ मिलेगा ,
शायद उनके जीते जी तो नहीं ...

Tuesday 9 October 2012

प्रेम की सरगम

कोई आँखों से दिल की
बात कहता रहा , 
और कोई पलके मूंदे 
ख्वाब ही बुनता रहा ........
रहा अनजान उन आँखों की 
इबारत से ,
बस अपनी ही धुन में रहा
हो कर मगन .......
कोई पुकारता रहा आँखों से ,
अपने गीतों से ......
और कोई
सुर में ही खोया रहा ...
रहा अनजान उन प्रेम भरे
सुरों की सरगम से ,
अचानक ये सुर कैसे बदले
किसी के,
कोई
ऐसा क्या कह बैठा ,
और कोई क्या समझा गया.......
किसी की आँखों से
प्रेम के अश्रु
और मन प्रेम की सरगम में
बह निकला ....


Monday 8 October 2012

संयम


महाभारत का कारण 
अक्सर
 असंयमित वाणी 
और असंयमित आचरण 
ही होता है ........
शांतनु ने अगर काम पर 
संयम रखा होता 
तो क्या ,
देवव्रत को भीष्म होना 
पड़ता ...!
तब 
महाभारत की नीव ही नहीं
रखी जाती .......
गांधारी का भी तो आचरण 
असंयमित ही था ,
अगर 
अपने नेत्रों पर पट्टी 
ना बांधी होती 
तो क्या ,
उसकी संतान ऐसी 
कुसंस्कारी और दुष्कर्मी 
होती ,
ना ही महाभारत की 
सम्भावना होती .........
 अगर संयमित आचरण 
दुर्योधन ने भी किया होता 
तो  क्या ,
वह रिश्तों को तार - तार 
करता...!
और ना ही महाभारत होती ...
द्रोपदी को भी तो 
थोड़ा संयम अपनी वाणी 
पर रखना ही था......
आखिर असंयमित वाणी 
ही तो कारण होती है 
महाभारत का...

Saturday 6 October 2012

मन तो मन ही है ......


मन तो मन ही है 
ना जाने कब ,
किस जहाँ की ओर उड़ चले ....
लेकिन ,
जब - जब मन ने उड़ान 
भर कर 
घर की देहरी पार करनी चाही
तो ना जाने कितने रेशमी 
तार क़दमों में आ कर 
उलझा दिए गए ,
इन रेशमी तारों की उलझन
 सुलझाने 
और गाँठ  लगने से बचाने में ही 
जीवन कट गया ,
भले ही कभी उंगलिया लहू -लुहान 
ही क्यूँ ना हो गयी हो ...
लेकिन , 
फिर भी , 
इस मन ने उड़ान भरनी तो नहीं 
छोड़ी ,
आज ये मन एक बार फिर 
चाँद को छूने को चल 
पड़ा है ....
देखें अब कौन रोकता है मन को 
उड़ान भरने से .....

Wednesday 3 October 2012

उनका मैं क्या करूँ .....


उसको भूलने के जूनून में ,
वे सूखे  'गुलाब '
जो उसने दिए थे कभी ,
मैंने जिन्हें रख दिया था ,
कुछ किताबो में छुपा कर ,
यादों की तरह ,
वे सूखे फूल , आज मैंने
बिखरा दिए .....
लेकिन ,किताबों के
पन्ने -पन्ने में
जो उनकी महक छुपी है ,
उनका मैं क्या करूँ .....

Wednesday 26 September 2012

जन्म दिन

जन्म दिन आया तो 
बहुत कुछ याद आया 
बिन भूला बचपन भी 
याद आया ...........
आईने मैं देखा तो एक 
बार फिर छोटी सी
उपासना दिखाई दी .........
और मैं फिर से खो गयी
बिन भूले बचपन में जहाँ
सबसे शरारती ,नटखट
अपनी आँखों में सिर्फ ,
शरारत और शरारत
के सिवा कुछ भी नहीं ,
लिए बहनों के पीछे
भागती कभी रुलाती ,
सताती नज़र आ रही थी ......
फिर माँ का सबक सिखाने तो
कभी खैर -खबर लेने ,डंडा
लिए हाथ में मेरे पीछे
आती नज़र आयी तो 


अचानक सारी बहने
हंसती हुयी मेरे बचाव
को आगे खड़ी भी नज़र
आयी ,


अरे माँ हम तो खेल रहे थे ,


पापा भी
ढाल बन कर खड़े नज़र
आये ........
और माँ भरे गले से बोली
मैं क्यूँ मारूंगी अपनी
छोटी सी चिड़िया को ,


पर
यह प्यार भी ऐसा ही बनाये
रखना ,


अब जो पल है फिर
क्या मिल पाएंगे ........
आज साथ हो ,


फिर मिलने को भी तरसोगी ,......
हमारे बाद तुम ही मायका
हो एक दूसरे का ...........
माँ कई देर तक हमे गले
लगा कर रोती रही थी ,
वो मैं तब नहीं अब
समझती हूँ ,याद कर के 


सब से छुपा कर आंसू भी
पोंछ लेती हूँ ............
इतना प्यार और प्यारा
बचपन कौन भूलता है ......

Wednesday 19 September 2012

कुछ पल

अचानक ,
ख्याल आया ...
समय के रेले में 
बढ़ते -बढ़ते ,
बहते-बहते ,
और 
चलते -चलते ,
पता ही नहीं चला 
मैं ,अपना ही 
अस्तित्व खोती
जा रही हूँ ........
ऐसे तो मैं , 


एक दिन ,
समय की नदी में
बहती -बहती ,
लुढ़कती- लुढ़कती,
इसी की मिटटी में ही
मिल जाउंगी ....,
समय की नदी की
कल-कल और
लहरों की कोलाहल
मैं ही खोयी रही ,
कभी अपने अंतर्मन
की आवाज़ 


मुझे सुनायी क्यूँ
नहीं दी ....
नदी की लहरों से
परे हट कर ,
जरा एक तरफ खड़े हो कर
देखा तो लगा ,
समय को रोक पाने की
हिम्मत तो नहीं है ,
पर कुछ पल तो
मैं अपनी
मुट्ठी में कर ही सकती हूँ...
जिन्हें कभी खोल कर देखूं
तो मुस्कुरा लूँगी........

Sunday 16 September 2012

मेरा पहला प्रेम-पत्र .........


बरसों बाद 
किताबों में दबा
 एक मुड़ा-तुड़ा एक कागज़
 का टुकड़ा मिला ..

खोल कर देखा 
 याद आया ,
ये तो वही ख़त है 
जो मैंने लिखा 
था उसको...

हाँ ये मेरा 
लिखा हुआ था 
प्यार भरा ख़त ..

या कहिये 
मेरा पहला प्रेम-पत्र ,
जो मैंने उसे कभी दिया ही नहीं ...

लिखा तो बहुत था 
उसमें
जो कभी उसे 
कह ना पायी ...

लिखा  था
 क्यूँ उसकी बातें
मुझे सुननी अच्छी लगती है

और उसकी बातों के
 जवाब में
क्यूँ जुबां  कुछ कह नहीं पाती ..

और ये भी लिखा था
 क्यूँ मुझे 
उसकी आँखों में अपनी छवि
 देखनी अच्छी लगती है ..

लेकिन
नजर मिलने पर क्यूँ
पलकें झुक जाती है ...

आगे यह भी लिखा था 
क्यूँ
मैं उसके आने का
 पल-पल
इंतज़ार करती हूँ..

और उसके आ जाने पर 
क्यूँ
मेरे कदम ही नहीं उठते ...

रात को जाग कर लिखा 
ये प्रेम-पत्र ,
रात को ही ना जाने कितनी
बार पढ़ा था मैंने ...

न जाने कितने ख्वाब सजाये थे मैंने ,
वो ये सोचेगा ,
या मेरे ख़त के जवाब में 
क्या जवाब देगा ....!

सोचा था
 सूरज की पहली किरण
ह मेरा ये पत्र ले कर जाएगी ..

लेकिन
उस दिन सूरज की किरण
सुनहली नहीं
 रक्त-रंजित थी ...!

मेरे ख़त से पहले ही
 उसका ख़त
 मेरे सामने था ...

लिखा था उसमें,
उसने सरहद पर
मौत को गले लगा लिया ...

और मेरा पहला प्रेम-पत्र  
मेरी मुट्ठी 
में ही दबा रह गया बन कर
एक मुड़ा-तुड़ा कागज़ का टुकड़ा...

Thursday 13 September 2012

मुझे इंतज़ार है , ' आज ' का .........

अक्सर लोग एक 'कल ' के 
इंतज़ार में 
जिन्दगी ही गुज़ार देते हैं 
कल कभी आया भी है क्या ,
इंतजार ,

इंतज़ार और
बस इंतज़ार
के सिवा हासिल ही
क्या हुआ किसी को .......
पर मुझे नहीं है ,
किसी भी
'कल' का इंतज़ार .......
मुझे इंतज़ार है ,
' आज ' का
कल का क्या भरोसा
सूरज तो उगे पर
मैं देखने को हूँ भी
या नहीं ...............
ऐसे कल का क्या
फायदा ,
जिसके आने के इंतजार
में एक उम्र ही तमाम
हो जाये ........


सुनहरे कल के लिए ,
मुझे , वह 'आज '
नहीं जीना जिसमे
मुझे तिल-तिल कर
ही मरना हो ......
मुझे इंतज़ार है उस
'सुनहरे आज '
 का .....

Friday 31 August 2012

ए जिन्दगी

जिन्दगी ...!
आ अब मैं तुम्हे हारना
चाहती हूँ 
तुमसे जीतना मुझे अब 
नामुमकिन 
ही लगता है ...
कभी तुम्हे बुलाया तो
चुप रहने को
कहती हो ,
चुप भी रहूँ तो ढेरों सवाल
लिए आ खड़ी होती हो...
अब बस तुझे बहुत
जी लिया ,
अब तुम्ह्ने हारना
ही चाहती हूँ ...
तुम्हारे आगे - पीछे ,
बहुत घूम लिया मैंने ,
बस अब तुमसे दामन छुड़ाने
को मन करता है ...
कभी मृगतृष्णा सी तुम
और कभी
तुम कस्तूरी की तरह हो
अब मैं तुम्हें तलाशते हुए 
और नहीं खोना चाहती 
तुम्हे हारना ही चाहती हूँ ...
तुम्हारे कोई भी रंग
अब मुझे,
अपनी और नहीं बुलाते ,
अब मैं काले रंग को
ओढ़ कर ही ,
तुम्हारे धुएं में गुम
हो जाना चाहती हूँ ...
ए जिन्दगी !
अब मैं तुम्हे
हारना ही चाहती हूँ...

Thursday 30 August 2012

सिर्फ तुम .....


कभी - कभी कोई,
किसी के लिए
दरवाज़े जब .स्वयं ही बंद
कर देता है ,
तो वह  अक्सर
उसी की आहट का
इंतजार क्यूँ करता है ....
क्यूँ ...!
हवा में हिलते , सरसराते
पर्दों को थाम ,
उनके पीछे ,
उस  के होने की चाह
रखता है .....
और क्यूँ ...!
अक्सर खिड़की बंद करने
के बहाने से
 दूर सड़क को ताकता
 रहता है ,
सिर्फ
उसी  को आते हुए
देखने की चाह में ..........!

Thursday 23 August 2012

********


बेशक हम उनका
मौन समझ लेते हैं ..
अब उन्हें क्या
 मालूम ....
हम भी तो उनको,
 सुनने को तरसते हैं ...

Tuesday 21 August 2012

मायका

मायके से विदाई की बेला के
 साथ -साथ मन और आँखों
 का एक साथ भरना और 
एक -एक करके बिखरा सामान
 सहेजना .........
बिखरे सामान को सहेजते हुए हर
 जगह-कोने में ,अपना एक वजूद 
भी नज़र आया,
 जो बरसों उस घर में जिया था ..........
कुछ खिलौने ,कुछ पेन -पेंसिलें ,
कुछ डायरियां और वो दुपट्टा भी 
जो माँ ने पहली बार सँभालने को
 दिया था ..........
कुछ माँ की नसीहते और पापा की
 हिदायतें भी .................
टांड पर उचक कर देखा तो एक 
ऊन का छोटा सा गोला लुढक आया 
साथ में दो सींख से बनी सिलाइयां 
भी ,
जिस पर कुछ बुना  हुआ था एक नन्हा
 ख्वाब जैसा ,उलटे पर उलटा और
 सीधे पर सीधा...........
अब तो जिन्दगी की उधेड़-बुन में 
उलटे पर सीधा और सीधे पर उल्टा ही 
बुना जाता है ...........
कुछ देर बिखरे वजूद को समेटने की
 कोशिश में ऐसे ही खड़ी रही.......
 पर  कुछ भी समेट ना सकी और 
दो बुँदे आँखों से ढलक पड़ी ............

Monday 13 August 2012

स्वतंत्रता दिवस..


मैं आज़ाद भारत की जनता
बेबस ,लाचार, लुटी -पिटी ,
जानवरों की तरह रहने
की आदी......
यह शब्द सुनने मुझे अच्छे
नहीं लगते ....
क्यूँ कि वे सारे ही गुण
मुझ में नहीं है ............
हाँ मैं सहनशील जरुर हूँ ,
पर कमजोर नहीं ...
मुझे मेरे वीरो पर गर्व है ,
मैं उन ज्ञात - अज्ञात
वीरो को भूली नहीं हूँ ,
जो शहादत की राह चले
गए ......
अब मैं सिर्फ भूत मैं ही नहीं
जीती ना इतराती ....
अब मैं वर्तमान में रह कर
भविष्य पर नज़र रखती हूँ ......
गलत के विरूद्ध आवाज़ 
भी उठाती हूँ ..
हाँ , मैं  कुछ समय के लिए
भ्रमित जरुर हुई  थी,
पर भटकी नहीं......
मुझे गर्व होता है कि मैं
भारत देश का हिस्सा
हूँ ..........
स्वतंत्रता दिवस पर मैं
धरती माँ के उन सपूतों
को नमन करती हूँ जिनके
कारण आज हम आज़ाद
है........

Friday 10 August 2012

कान्हा, तुम अब धरा पर मत आना


कान्हा ,
तुमने कहा था ....
जब भी धर्म की  हानि होगी ,
मैं इस धरा पर आऊंगा ...
पर तुम हो कहाँ पर 
नज़र ही नहीं आते ........
अगर आग्रह मानो मेरा ,
अब तुम धरा पर मत आना ...
बन पंगु इंसान 

 कब तक , 
आखिर कब तक 
किसी अवतार का तकेगा सहारा ......
तुम क्यूँ नहीं हर इन्सान में 
हिम्मत और प्रेरणा 
 बन  समा जाते ......

द्रोपदी का चीर तो  बढाया ,
पर 'का-पुरुषों' के
 विरुद्ध 
शस्त्र उठाना नहीं सिखाया 
अब हर युग में द्रोपदी ,
तुम्हारा ही सहारा तकती है ...

तुम क्यूँ नहीं दामिनी सी 
शक्ति बन समा जाते हर नारी में ...
अब तुम धरा पर मत आना ,
आना तो बस  विचार बन 
कर ही अवतरित होना ........

Thursday 9 August 2012

कभी -कभी खाली घर भी बोलने लग जाता है


कभी -कभी खाली 
घर भी बोलने  लग जाता है ,
 सुन कर देखा है कभी ...!
दरवाज़े ,दीवारें और 
बंद अलमारियां भी 
गुनगुनाने लग जाती है .....
दरवाज़ों पर होली से रंगे ,
नन्हे - नन्हे हाथ 
थपथपाने लग जाते हैं ....
अलमारी में रखी ,
छोटी सी थाली ,कटोरी ,
गिलास और चम्मच के 
साथ खनखनाने लग जाती है ...
परछत्ती से कुछ खिलौने 
झाँकने लगते है ...
छोटा सा बन्दर मुहं चिढाता है तो 
एक छोटी सी लाल रंग की कार 
आगे से सर्र से निकल जाती है ....
और कभी "टिप -टिप ,चियू -चियू ..."
की जूतों में से आती 
आवाज़ की आहट पर
 पीछे मुड़ कर देखो तो ,
नज़र आते हैं दो डगमगाते ,
नन्हे -नन्हे कदम  
और अपनी  ओर बाहें फैलाते 
 दो प्यारे -प्यारे हाथ .,
और गूंज उठती है किलकारियां .......
कभी सुन कर देखो ,
खाली घर भी बोल उठते है 
कभी - कभी .....

Saturday 28 July 2012

सुनो ...!!


सुनो ...!!
एक बार चले आओ ,
जरा एक बार सिर्फ एक बार
मुड़ के तो देखो ....
मैं अभी भी तुम्हारी राह ताक
रही हूँ ,
अपनी पलकें बिछाए .........
तुम्हारे बिन सूना-सूना है  सब,
जीने का अर्थ ही क्या रह जायेगा
तुम बिन ,मेरा ........
लेकिन ,प्रिय ...!!
ये तो मैंने कहा ही नहीं तुमसे
फिर क्यूँ तुम मुड़ के मेरी
बेचारगी की प्रतीक्षा कर रहे हो .....
जाओ तुम्हारा पथ ,
तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है ,
अगर तुम सूरज को साथ ले कर
चलते हो ,
तो मेरे पास भी
एक छोटा सा दीपक है , जो
मुझे मेरी मंजिल तक
राह दिखलायेगा .............

Tuesday 24 July 2012

हमारा प्रेम


हमारा प्रेम
मुझे पानी के बुलबुले
जैसा ही लगता है ........
ऐसा जैसे थोड़ी सी ठेस लगी
और गुम........
इसलिए मैंने इसे एक छोटी सी
 कांच की पटारी में छुपा कर ,
सहेज कर  रख दिया  है ......
जब - तब तुम्हें देखने का मन
करता है ....
ये पटारी खोल लेती हूँ और इसमें ,
तुम्हारे साथ -साथ
सारा जहाँ नज़र आता है ........
चल पड़ती हूँ
तुम्हारा हाथ थाम .............
पर कभी डर भी लगता है क्या वो
दिन भी आ जायेगा कभी
ये पटारी खोलूंगी और
आस-पास की गरम हवाएं
इसे उड़ा ही ना ले जाये .....
इसे खोलने से पहले
मैं , उन गरम हवाओं को
अपने आंसुओं से नम किये
रखती हूँ ..........

Sunday 22 July 2012

तुम्हारा मौन ......


मैंने जब भी तुमको पुकारा
 तुम मौन तो नहीं रहे कभी .....
पर आज मेरे पुकारने पर तुम ,
मौन ही रहे .....
 तुम्हारा मौन रहना मुझे
अखर गया ,
पर
तुमसे ज्यादा तो तुम्हारा
मौन ही मुखर
हो कर बोलता रहा .......
और
मैं सुनती रही पलकें नम
किये .....
तुम्हारे जाने के बाद
खुद को
तुम्हारे मौन ,
और तुम्हारे अहसास से
ही घिरा पाया ...........

Thursday 19 July 2012

जिन्दगी की किताब


आओ आज फिर से
जिन्दगी की  किताब  लिखें ...
सुंदर से सुनहरे -रुपहले पन्नो
से सजी जिन्दगी की किताब के पन्ने,
 अब उलझनों की सिलवटों
से मुरझायेगे नहीं .....
ना ही आंसुओं से गीले हो कर अपना
रूप बिगाड़ेंगे....
ना ही कहीं यादों के सूखे गुलाब ही
 मिलेंगे किसी पन्ने के बीच में ....
ये किताब ही गुलाबों की तरह
 महकेगी अब तो  ........
अब किसी याद की टीस बयां करता
कोई कोना मुड़ा हुआ नहीं मिलेगा ......
हर पन्ना आज को ही बयान करेगा ,
बीते कल की कोई बात नहीं होगी ......
मटमैले -धूसर रंगों की अब यहाँ कोई
जरूरत नहीं है ....
एक आसमानी रंग जो आँखों में सपने
की तरह पलता रहा है उसी पर
सभी सपनो को सच करती ,
जिन्दगी की किताब फिर से लिखेंगे .....

Sunday 8 July 2012

उसकी चाहत

जब से उसने कहा ,
वो मेरे लबों पर हंसी 
ही देखना चाहता है ......
तब से लब तो मुस्कुराते है 
पर नयन अभी भी छलक
जाते है ..........

हमने .......



तुझे दूर से 

देख कर ही 

जी लिया हमने 


तुझे तो क्या 


तेरी तस्वीर को भी नहीं 

छुआ हमने ...

दूर से ही चाहते 


 रहे तुझको 

करीब आ कर 


तुझे खोना

 कभी नहीं चाहा हमने ...