Tuesday 30 December 2014

फिर भी बने रहना तुम ..

एक साल और बीता
अच्छा या बुरा
मालूम नहीं यह मुझे

बस बीता दिया
या बीत गया ,
जैसे मेरी उमर !
 एक बरस
हो गया हो कम ....

गर्मी इस साल भी रही ,
हाँ ! कीर्तिमान नहीं टूटे
कई बरसों की तरह ,
नए आयाम  के साथ कायम रही
तुम्हारी बेरुखी की तरह।

बारिश भी कहाँ थी !
हुई भी तो
बिन मौसम !
बारिश का बहाना नहीं मिला
मुझे।
इस बार भी तकिये ने ही
आँसू झेले ....

और अब सर्दी !
यह भी नए आयाम
स्थापित किये जा रही है।
बर्फ जमाए जा रही है
हड्डियों में
और रिश्ते में तुम्हारे और मेरे।

फिर भी
बने रहना तुम
मौसम की तरह हर बरस
जैसे भी हो
जाने -अनजाने या थोड़े से पहचाने।

 हाँ ! तुम
गर्मी में कभी  सुकून भरा
झोंका बन जाना ,
सर्दी में गर्म लिहाफ़
ओढ़ा जाना।
बारिश में रुलाना मत !
मुझे तुम्हारा इंतज़ार रहेगा
 हर बरस की तरह !











Sunday 28 December 2014

हायकू ( गांव )

गांव की बाला
नहीं है  मज़बूर
थामे पुस्तक

नया ज़माना
नयी है तकनीक
खुश किसान


Wednesday 24 December 2014

हायकू ( पंछी )


चाँद से प्रीत
रहे मन मसोस
पंछी बाँवरा

दूर गगन
खग न जाने मग
भटके राह

बंद पिंजरा
उड़ने की चाहत
चुप है पक्षी


जीने की चाह
जर्जर है पखेरू
जरा अवस्था


Tuesday 23 December 2014

एक पाती जाने पहचाने अनजाने के नाम


एक बात जो
तुमसे कही मैंने ,
बन कर अपनी सी।
वह बात तो तुमने भी
सुनी होगी।

या
अनसुनी कर दी…
कभी कुछ
पलट कर जवाब भी नहीं दिया।

बने रहे
बेगाने से , अनजाने से
फिर मैं क्यों कहूँ
तुम जाने -पहचाने हो !

कोई तो परिचय ,
पहचान तुम्हारा भी तो होगा
कि
तुम्हें अपना सा कह सकूँ !






Monday 22 December 2014

हायकू ..( पन्ने )

यादों से घिरे
पन्ने फड़फड़ाये
मन उदास


कोरे  कागज़
पर लिखी किस्मत
बांच ना पाऊँ


पृष्ठ पलटे
पुरानी डायरी के
मन मुस्काये



Wednesday 17 December 2014

जो बद् दुआ बन कर उमड़ रही है दुनिया की हर मां के हृदय से ....

चुप है एक माँ,
क्या कह कर मन को मनाए,
क्या समझाए किसी को ।

रोती हुई माओं के
साथ ही रो पड़ती है
 वह स्वयं....

प्रार्थना ,
सांत्वना
सभी शब्द छोटे और झूठे
नज़र आते हैं।

कब सोचा था किसी ने भी
विदा के लहराते हाथ
किताबें थामें हाथ ,
अंतिम विदाई लिए
खुद किताबों में लिखा इतिहास बना
दिये जाएंगे ।

जो दौड़ आते थे
माँ की एक पुकार पर
अब नहीं सुनाई  देती उनको
कोई भी आवाज़...

माँ किसी को बद् दुआ
कहाँ देती है !
लेकिन,
उसका तड़पता हृदय
दुआ भी तो नहीं देता ।

 वहशी दरिंदों को क्या
अपनी माँ का भी
ख्याल ना आया !
क्या उन्हें दूध का कर्ज
यूं किसी माँ की गोद
उजाड़ कर ही चुकाना था !

सुना है
माँ की  दुआ अमृत की
तो
बददुआ तेज़ाब की बरसात करती है ।

अब इंतज़ार है तो बस
उन वहशी दरिंदों पर
तेज़ाबी बरसातों के बरसने की,
जो  बद् दुआ बन कर उमड़ रही है
दुनिया की हर मां के हृदय से ।

Monday 15 December 2014

चाँद का ग्रहण से गहरा नाता है....!

तस्वीर में चाँद था
या चाँद की तस्वीर थी 
क्या फर्क पड़ता है।

चाँद तो बस चाँद है
सुंदर सा
मन को हरने वाला
मनोहर.....!

तस्वीर का चाँद
मुस्कुराता दिखा
मनोहर मुस्कान के साथ।

मुस्कान जो दिखाई दी
क्या वह दिल से जुड़ी भी थी
या यूँ ही
तस्वीर की सुंदरता बढाने के लिए थी !

क्योंकि
आँखों में अब भी
उदासियां नज़र आती है
चाँद का ग्रहण से गहरा नाता है....!

शायद...!

Tuesday 9 December 2014

बदला फिर क्या था ...!

सभी कुछ
वैसे ही था
जैसे बरसों पहले हुआ करता था ।
गाँव , खेत , जोहड़
वही गलियां...
गलियों में से गुजरता
बचपन भी वही था ।
खेतों की ओर
जाने वाली हवाएँ,
खेतों की तरफ
अब भी बहा ले
जाना चाह रही थी ।
और जोहड़ !
जोहड़ में तैरती भैंसो ने
अब तक
अपनी आदते नहीं बदली...
ऩा जाने
आपस में बतियाती है
या
खो जाने के भय से
अपनी गरदन रखे रहती है
एक दूसरी की पीठ पर....।
किनारे पर
कदम ताल करती
बतखों के कदम
अब भी सधे थे....
बदला फिर क्या था ...!
गाँव की हवा...
या
गाँव के लोगों के मिज़ाज...
सच्ची मुस्कुराहटें
कहीं दूर चली गई हो...
हर कोई
नकाब ओढे हुए ,
मुखोटों के पीछे से झांकता मिला...
वो बच्चे भी नज़र नहीं आए ,
जो जोहड़ किनारे
टूटी मटकी के टुकड़ों को
पानी पर तैरा दिया करते थे....
नज़र आए भी तो
किताबों के ढेर के नीचे दबे
या
मोबाइल फोन के
अंदर झांकते हुए...
शहरी जहरीली हवाएँ
असर कर रही है
गाँव के लोगों की
रीढ़ की हड्डी पर....
तभी तो ,
मैंने बिना रीढ़ के
लोगों को जन्मते देखा
मेरे बचपन के गाँव में...