Monday 31 August 2015

खिल जाएगी यह धरा ....

प्रेम के जो बीज,
मुट्ठी में बंद किए थे,
वे बीज दिए मैंने
सूनी , उदास धरा पर ।

रंग भरे
प्रेम के बीज
खेत की मेंढ पर
एक -एक कर के
बीज दिए है ।

कुछ यूँ ही
हथेली में रख
धरा पर
बिखरा दिए ।

एक दिन जरूर
नवांकुर फूटेंगे
रंग भरे बीजों से
खिल जाएगी यह धरा ।

एक-एक मेंढ
खिलेगी प्रेम के रंगों से,
खिले रंगों के ,
रंग भरी
चूनर ओढ
खिलखिला पड़ेगी यह धरती भी ।

Monday 24 August 2015

तुम मुस्कुराओगे नहीं तो...

तुम चुप रहोगे
 तो क्या
बादल बारिश नहीं लाएगा
फिर तो
आसमान सूना ही
रहेगा शायद।

तुम बोलोगे नहीं
तो क्या
चिड़ियाँ सुर भूल जाएगी
फिर तो
बगिया सूनी ही रहेगी शायद।

तुम मुस्कुराओगे नहीं
तो क्या
सूरज दिन नहीं लाएगा
फिर तो
मेरे मन में अँधियारा ही रहेगा
यकीनन !

Tuesday 11 August 2015

इस बरस..

इस बरस
नज़र आ रहे हैं 
चहुँ ओर उगे हुए 
आक , धतूरे 
और भांग के पौधे |

इस बरस
भुजंग 
आने लगे हैं बाहर 
आस्तीनों से ,
उठाने लगे है फन |

लगता है 
इस बरस,
चन्दन भी अधिक 
लपेटना होगा शिव को |
  

Sunday 9 August 2015

इश्क में तेरे....

इश्क में तेरे
बदल लिया है वेश
फिरते हैं दर दर
तलाश में तेरी

दरस को तेरे
तरसे मेरे नैन
बस इक झलक
पा जाए
तर जाऊँ
भवसागर से

वेद पुराण
सब पीछे छोड़े
लिया है बस इक
तेरा नाम....

Wednesday 5 August 2015

कहाँ है मेरे पद चिन्ह !

अनुकरण करते -करते ,
पद चिन्हों पर
चलते -चलते
भूल ही गए अपने क़दमों की आहट।

मालूम नहीं था
एक दिन गुम हो जाना है
इस धरा में मिल  जाना है
बन कर मिट्टी।
या
विलीन हो जाना है
वायु में
बिना महक ,बिना धुँआ।

बस यूँ ही चलते ही गए
अनुगामी बन
ढूंढी ही नहीं कभी
अपनी राह।

 पैरों की रेखाएं ,
पद्म चिन्ह
सब  गुम हो गए ,
चलते -चलते
क़दमों पर कदम रखते।

आज मुड़ कर देखा
कहाँ है मेरे
पद चिन्ह !
उन्हें तो निगल गयी है
तपती धूप।