Friday 8 September 2017

यह जिंदगी

यह जिन्दगी,
 बंधी है , सम्भाली सी 
एक नियत  दायरे में ,
या
खुल कर 
बिखरने को आतुर है ।

चुप रहें ,
बात करें ,
हंसे या
मुस्कुराएं....

सही राह 
चलते रहना है
या 
नई पगडंडियां भी
आजमाना है ।

यह जिंदगी,
बदहवास सी
भटकन ही तो है !
 ।

Saturday 2 September 2017

शायद एक जैसी ही है

झोंपड़ी में जन्मे बच्चे 
और
 नाली के पास 
खिले फूल की 
तकदीर ,
 शायद
एक जैसी ही है ....

दोनों का जन्म 

बस यूँ ही हो जाता है
 बिना
किसी दुआ ,इबादत ,
मन्नत मांगे ...


दोनों को ही 

देखा जाता है ,
दूर से ही 
हिकारत से ,
एक में झोंपड़ी की
दूसरे में नाली की बू
जो आती है ...


 दोनों ही एक दिन ,

इस दुनिया से 
चले जाते हैं 
पहला 
 शब्द -बाणों ,
ज़माने की नफरत को
सहते -सहते ....

दूसरा 

किसी वाहन की
चपेट में आकर ...