झोंपड़ी में जन्मे बच्चे
और
नाली के पास
खिले फूल की
तकदीर ,
शायद
एक जैसी ही है ....
दोनों का जन्म
बस यूँ ही हो जाता है
बिना
किसी दुआ ,इबादत ,
मन्नत मांगे ...
दोनों को ही
देखा जाता है ,
दूर से ही
हिकारत से ,
एक में झोंपड़ी की
दूसरे में नाली की बू
जो आती है ...
दोनों ही एक दिन ,
इस दुनिया से
चले जाते हैं
पहला
शब्द -बाणों ,
ज़माने की नफरत को
सहते -सहते ....
दूसरा
किसी वाहन की
चपेट में आकर ...
और
नाली के पास
खिले फूल की
तकदीर ,
शायद
एक जैसी ही है ....
दोनों का जन्म
बस यूँ ही हो जाता है
बिना
किसी दुआ ,इबादत ,
मन्नत मांगे ...
दोनों को ही
देखा जाता है ,
दूर से ही
हिकारत से ,
एक में झोंपड़ी की
दूसरे में नाली की बू
जो आती है ...
दोनों ही एक दिन ,
इस दुनिया से
चले जाते हैं
पहला
शब्द -बाणों ,
ज़माने की नफरत को
सहते -सहते ....
दूसरा
किसी वाहन की
चपेट में आकर ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-09-2017) को "आदमी की औकात" (चर्चा अंक 2717) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सच्चा सम्मान - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteउस फूल के बारे में तो नहीं कहा जा सकता पर सर्वहारा ने तो बार-बार, कई बार अपना भाग्य खुद लिखा है !
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