Monday 14 August 2017

इन चुप्पियों के समन्दरों में...

चुप है हवाएँ ,
चुप है धरती ,
चुप ही है आसमान ,
और
चुप से  हैं
उड़ाने भरते पंछी...

पसरी है
दूर तलक चुप्पियाँ।

इन घुटन भरी
 चुप्पियों के समन्दरों में.
छिपे हैं,
जाने कितने ही ज्वार...

 और
छुपी है
कितनी ही
बरसने को आतुर
घुटी -घुटी सी घटाएं...


8 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, श्री कृष्ण, गीता और व्हाट्सअप “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  2. बहुत ख़ूब ... इन चुप्पियों को मुखर होने दो ... जीना आसान हो जाता है ...

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन लेख ... तारीफ-ए-काबिल ... Share करने के लिए धन्यवाद। :)

    ReplyDelete
  4. पसरी है दूर तलक चुप्पियाँ, इन्हीं में छिपे हैं कितने ही ज्वार !

    ReplyDelete
  5. नाम वही, काम वही लेकिन हमारा पता बदल गया है। आदरणीय ब्लॉगर आपने अपने ब्लॉग पर iBlogger का सूची प्रदर्शक लगाया हुआ है कृपया उसे यहां दिए गये लिंक पर जाकर नया कोड लगा लें ताकि आप हमारे साथ जुड़ें रहे।
    इस लिंक पर जाएं :::::
    http://www.iblogger.prachidigital.in/p/best-hindi-poem-blogs.html

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete