चुप है हवाएँ ,
चुप है धरती ,
चुप ही है आसमान ,
और
चुप से हैं
उड़ाने भरते पंछी...
पसरी है
दूर तलक चुप्पियाँ।
इन घुटन भरी
चुप्पियों के समन्दरों में.
छिपे हैं,
जाने कितने ही ज्वार...
और
छुपी है
कितनी ही
बरसने को आतुर
घुटी -घुटी सी घटाएं...
चुप है धरती ,
चुप ही है आसमान ,
और
चुप से हैं
उड़ाने भरते पंछी...
पसरी है
दूर तलक चुप्पियाँ।
इन घुटन भरी
चुप्पियों के समन्दरों में.
छिपे हैं,
जाने कितने ही ज्वार...
और
छुपी है
कितनी ही
बरसने को आतुर
घुटी -घुटी सी घटाएं...
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, श्री कृष्ण, गीता और व्हाट्सअप “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ... इन चुप्पियों को मुखर होने दो ... जीना आसान हो जाता है ...
ReplyDeleteबेहतरीन लेख ... तारीफ-ए-काबिल ... Share करने के लिए धन्यवाद। :)
ReplyDeleteपसरी है दूर तलक चुप्पियाँ, इन्हीं में छिपे हैं कितने ही ज्वार !
ReplyDeleteनाम वही, काम वही लेकिन हमारा पता बदल गया है। आदरणीय ब्लॉगर आपने अपने ब्लॉग पर iBlogger का सूची प्रदर्शक लगाया हुआ है कृपया उसे यहां दिए गये लिंक पर जाकर नया कोड लगा लें ताकि आप हमारे साथ जुड़ें रहे।
ReplyDeleteइस लिंक पर जाएं :::::
http://www.iblogger.prachidigital.in/p/best-hindi-poem-blogs.html
बहुत सुन्दर
ReplyDeletehttps://whitebazaar.in/
ReplyDelete