Thursday 30 April 2015

स्त्री अडिग ही रही सदैव...

स्त्री
सदैव खड़ी कर दी जाती है
सवालों के कटघरे में

जवाब को उसके
सफाई मान लिया जाता है
तो
खामोशी को उसका
जुर्म...

तीर जैसे सवालों को
सुनती, सहती है वह
अडिग ,
मुस्कराते हुए ...

स्त्री अडिग ही रही
सदैव
लेकिन
असहनीय है धरा के लिए
स्त्री का
यूँ मुस्कुरा कर
सहन करना ।

विदीर्ण हो जाता है
हृदय ,
और डोल जाती है धरती
आ जाता है
भूचाल....!

Thursday 16 April 2015

प्रेम बस तुम हमेशा ही कायम हो

प्रेम
तुम आशा हो
मन की प्रिया हो
तन-मन को जो बांधे
वो एकता हो।

प्रेम
तुम नील -गगन की
नीलिमा में हो
मन की अपार  शांति में हो।

प्रेम
बस तुम हो
कभी -कभी ही नहीं
हमेशा ही कायम  हो।



Wednesday 15 April 2015

कांच की चूड़ी सा नाज़ुक तेरा मन है पिया...

 कांच की चूड़ी सा नाज़ुक 
 तेरा मन है पिया ,
सम्भाल के रखूं 
बंद डिबिया में तुझे। 

जरा सी ठिठोली करूँ तो 
ठेस लगे तेरे मन को 
कांच सा तड़क जाये। 

तू क्या जाने 
तेरे तड़कने के डर से 
दिल कितना धड़के मेरा ,
रखूं संभाल -संभाल तुझे। 

 इक हंसी तेरी पिया 
खनका दे मेरा तन मन ,
चमकता -खनकता रहे तू 
मेरी कलाई में। 

जैसे मेरा मन ,वैसा ही तेरा रंग दिखे मुझे। 
सम्भालू  रखूं तुझे डिबिया में 
कांच की चूड़ी सा मन तेरा पिया। 



Sunday 12 April 2015

नज़रें शक से टटोलती है क्यों फिर..

सरहदों में बँटे देश !
इस पार मैं ,
उस पार भी मैं ही तो हूँ।

उधर के सैनिक मेरे ,
इधर के सैनिक भी मेरे ही हैं।
एक साथ उठते कदम
बंदूक - राइफल सँभालते।

दिलों में छुपा है कही
किसी कोने में दबा प्यार अब भी ,
नज़रें शक से टटोलती है
क्यों फिर।

दरवाज़ा उधर से बंद हुआ ,
दरवाज़ा बंद यहाँ से भी तो किया गया !
रह गई तो बस कंटीली बाड़
बीच ही में
दिलों को बेधती हुई।

बेबस झांकती रही
मेरी नज़र वहां से ,
झांक तो यहाँ से भी रही थी
 मैं बेबस सी। 

Friday 10 April 2015

प्रेम तुम जीत हो....

प्रेम
तुम जीत हो
लेकिन
हारा है हर कोई
तुम्हें पाने
की चाहत में...

 फिर
मैं क्यों कर जीत पाती ...

प्रेम
जहाँ तुम
वही मेरा डेरा

तुम्हारे कदमों
को पहचान
चली आती हूँ...

ढूंढ ही लेती हूँ
तुम्हें
साथ है सदा का,
जैसे
परछाई...

क्योंकि प्रेम
 तुम
प्रकाश हो
अंधकार नहीं....

Tuesday 7 April 2015

जीवन की सांध्य बेला से...

जीवन की
सांध्य बेला से पहले
साँझ हो जाने की सोचना
अजीब नहीं लगता
फिर भी  हैरान किए जाता है।

मोह भरी दुनिया से परे
एक  दूसरी दुनिया भी तो है !
जाने कैसी होगी ,
क्या मालूम !

वहां भी मोह - माया  का
जाल - जंजाल
होगा या नहीं !
कुछ पाने की ललक होगी
या  ना पाने की कसक होगी।

मैं - तू का झगड़ा होगा
या त्याग होगा ,
एक - दूसरे के लिए !
जाने क्या होगा ,
उस पार की दुनिया में !

जो भी हो
एक तार सा तो है
जो बेतार हुआ खींचता है।

बिन मोह की दुनिया से
मोह हुआ जाना
अजीब नहीं लगता ,
फिर भी  हैरान किए जाता है।

Sunday 5 April 2015

बेटे भी तो हैं सृष्टि के रचियता से.....

  बेटियां है अगर
लक्ष्मी, सरस्वती
और दुर्गा का रूप ।

 बेटे भी तो हैं प्रतिरूप
 नारायण, ब्रह्मा और शिव का।
सृष्टि के रचियता से
पालक भी हैं।

बेटियां अगर नाज़ है
तो बेटे भी मान है
 गौरव है
सीमा के प्रहरी है
देश के रक्षक है।

जैसे सर का हो ताज,
बहनों के होठों की मुस्कान,
माँ -बाप की आस है ,
बुढ़ापे की लाठी भी तो हैं बेटे।

 माँ की बुझती आँखों की
रोशनी है तो
पिता के कंधो का भार संभाले
वो  कोल्हू के बैल भी हैं।

निकल पड़ते हैं
अँधेरे में ही
तलाशते अपनी मंज़िल
बिन डरे
बिन थके।

दम लेते हैं मंज़िल पर जा कर
भर लेते हैं आसमान
बाँहों में अपने,
इस धरा के सरताज़ हैं बेटे।











Wednesday 1 April 2015

कुछ बाते रह गई मन की मन में

कुछ बाते कही तुमने ,
कुछ रह गई अनकही।
मन की कही भी ,
और रह गई  मन की मन में।

दूर बैठा कोई कैसे
सुनता - कहता है
समझता भी कैसे है !
बिना चिठ्ठी ,
बिना तार
कैसे होता है संचार ।

बातें जो कही
वह  तो सुन  ही नहीं पाई
अन कहा ही
देता रहा सुनाई।

खामोशी में जो
कोलाहल होता है
वह बतकही में कहाँ !