जीवन की
सांध्य बेला से पहले
साँझ हो जाने की सोचना
अजीब नहीं लगता
फिर भी हैरान किए जाता है।
मोह भरी दुनिया से परे
एक दूसरी दुनिया भी तो है !
जाने कैसी होगी ,
क्या मालूम !
वहां भी मोह - माया का
जाल - जंजाल
होगा या नहीं !
कुछ पाने की ललक होगी
या ना पाने की कसक होगी।
मैं - तू का झगड़ा होगा
या त्याग होगा ,
एक - दूसरे के लिए !
जाने क्या होगा ,
उस पार की दुनिया में !
जो भी हो
एक तार सा तो है
जो बेतार हुआ खींचता है।
बिन मोह की दुनिया से
मोह हुआ जाना
अजीब नहीं लगता ,
फिर भी हैरान किए जाता है।
सांध्य बेला से पहले
साँझ हो जाने की सोचना
अजीब नहीं लगता
फिर भी हैरान किए जाता है।
मोह भरी दुनिया से परे
एक दूसरी दुनिया भी तो है !
जाने कैसी होगी ,
क्या मालूम !
वहां भी मोह - माया का
जाल - जंजाल
होगा या नहीं !
कुछ पाने की ललक होगी
या ना पाने की कसक होगी।
मैं - तू का झगड़ा होगा
या त्याग होगा ,
एक - दूसरे के लिए !
जाने क्या होगा ,
उस पार की दुनिया में !
जो भी हो
एक तार सा तो है
जो बेतार हुआ खींचता है।
बिन मोह की दुनिया से
मोह हुआ जाना
अजीब नहीं लगता ,
फिर भी हैरान किए जाता है।
मैं - तू का झगड़ा होगा
ReplyDeleteया त्याग होगा ,
एक - दूसरे के लिए !
जाने क्या होगा ,
उस पार की दुनिया में !
उम्दा रचना Upasna जी
मैं - तू का झगड़ा होगा
ReplyDeleteया त्याग होगा ,
एक - दूसरे के लिए !
जाने क्या होगा ,
उस पार की दुनिया में !
उम्दा रचना Upasna जी
वहां भी मोह - माया का
ReplyDeleteजाल - जंजाल
होगा या नहीं !
कुछ पाने की ललक होगी
या ना पाने की कसक होगी।
क्या खूब कहा हैं...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-4-15 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1943 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
उम्दा रचना
ReplyDeleteलाजवाब
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