Wednesday, 15 April 2015

कांच की चूड़ी सा नाज़ुक तेरा मन है पिया...

 कांच की चूड़ी सा नाज़ुक 
 तेरा मन है पिया ,
सम्भाल के रखूं 
बंद डिबिया में तुझे। 

जरा सी ठिठोली करूँ तो 
ठेस लगे तेरे मन को 
कांच सा तड़क जाये। 

तू क्या जाने 
तेरे तड़कने के डर से 
दिल कितना धड़के मेरा ,
रखूं संभाल -संभाल तुझे। 

 इक हंसी तेरी पिया 
खनका दे मेरा तन मन ,
चमकता -खनकता रहे तू 
मेरी कलाई में। 

जैसे मेरा मन ,वैसा ही तेरा रंग दिखे मुझे। 
सम्भालू  रखूं तुझे डिबिया में 
कांच की चूड़ी सा मन तेरा पिया। 



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