बेटियां है अगर
लक्ष्मी, सरस्वती
और दुर्गा का रूप ।
बेटे भी तो हैं प्रतिरूप
नारायण, ब्रह्मा और शिव का।
सृष्टि के रचियता से
पालक भी हैं।
बेटियां अगर नाज़ है
तो बेटे भी मान है
गौरव है
सीमा के प्रहरी है
देश के रक्षक है।
जैसे सर का हो ताज,
बहनों के होठों की मुस्कान,
माँ -बाप की आस है ,
बुढ़ापे की लाठी भी तो हैं बेटे।
माँ की बुझती आँखों की
रोशनी है तो
पिता के कंधो का भार संभाले
वो कोल्हू के बैल भी हैं।
निकल पड़ते हैं
अँधेरे में ही
तलाशते अपनी मंज़िल
बिन डरे
बिन थके।
दम लेते हैं मंज़िल पर जा कर
भर लेते हैं आसमान
बाँहों में अपने,
इस धरा के सरताज़ हैं बेटे।
लक्ष्मी, सरस्वती
और दुर्गा का रूप ।
बेटे भी तो हैं प्रतिरूप
नारायण, ब्रह्मा और शिव का।
सृष्टि के रचियता से
पालक भी हैं।
बेटियां अगर नाज़ है
तो बेटे भी मान है
गौरव है
सीमा के प्रहरी है
देश के रक्षक है।
जैसे सर का हो ताज,
बहनों के होठों की मुस्कान,
माँ -बाप की आस है ,
बुढ़ापे की लाठी भी तो हैं बेटे।
माँ की बुझती आँखों की
रोशनी है तो
पिता के कंधो का भार संभाले
वो कोल्हू के बैल भी हैं।
निकल पड़ते हैं
अँधेरे में ही
तलाशते अपनी मंज़िल
बिन डरे
बिन थके।
दम लेते हैं मंज़िल पर जा कर
भर लेते हैं आसमान
बाँहों में अपने,
इस धरा के सरताज़ हैं बेटे।
सटीक रचना
ReplyDeleteहै दोनो समान ,कोई किसी से नही कम
ReplyDeleteहार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (06-04-2015) को "फिर से नये चिराग़ जलाने की बात कर" { चर्चा - 1939 } पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर भाव.
ReplyDeleteनई पोस्ट : मनुहार वाले दिन
बेटा बेटी एक समान! अपनी अपनी जगह दोनों का मह्त्व है ...फर्क तो सिर्फ सोच में रहता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
बेटे भी हैं ये सब अगर साथ निभाएं ... बेटियाँ अक्सर साथ देती हैं तभी याद आती हैं ज्यादा ....
ReplyDeleteयह बहुत अजीब बात नहीं लगती कि बेटियों को माँ बाप याद आते हैं और बहुओं को सास ससुर याद नहीं आते ....? अच्छी बेटियां अपने पतियों को उनके माँ बाप की याद दिला सकती है ....बहुत मामूली सी बात है फिर भी हम नहीं समझ पाते....आभार
Deleteबहुत बढ़िया.. बेटा बेटी एक समान
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