Sunday, 5 April 2015

बेटे भी तो हैं सृष्टि के रचियता से.....

  बेटियां है अगर
लक्ष्मी, सरस्वती
और दुर्गा का रूप ।

 बेटे भी तो हैं प्रतिरूप
 नारायण, ब्रह्मा और शिव का।
सृष्टि के रचियता से
पालक भी हैं।

बेटियां अगर नाज़ है
तो बेटे भी मान है
 गौरव है
सीमा के प्रहरी है
देश के रक्षक है।

जैसे सर का हो ताज,
बहनों के होठों की मुस्कान,
माँ -बाप की आस है ,
बुढ़ापे की लाठी भी तो हैं बेटे।

 माँ की बुझती आँखों की
रोशनी है तो
पिता के कंधो का भार संभाले
वो  कोल्हू के बैल भी हैं।

निकल पड़ते हैं
अँधेरे में ही
तलाशते अपनी मंज़िल
बिन डरे
बिन थके।

दम लेते हैं मंज़िल पर जा कर
भर लेते हैं आसमान
बाँहों में अपने,
इस धरा के सरताज़ हैं बेटे।











8 comments:

  1. सटीक रचना

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  2. है दोनो समान ,कोई किसी से नही कम

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  3. हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (06-04-2015) को "फिर से नये चिराग़ जलाने की बात कर" { चर्चा - 1939 } पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बेटा बेटी एक समान! अपनी अपनी जगह दोनों का मह्त्व है ...फर्क तो सिर्फ सोच में रहता है ...
    बहुत सुन्दर ..

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  5. बेटे भी हैं ये सब अगर साथ निभाएं ... बेटियाँ अक्सर साथ देती हैं तभी याद आती हैं ज्यादा ....

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    1. यह बहुत अजीब बात नहीं लगती कि बेटियों को माँ बाप याद आते हैं और बहुओं को सास ससुर याद नहीं आते ....? अच्छी बेटियां अपने पतियों को उनके माँ बाप की याद दिला सकती है ....बहुत मामूली सी बात है फिर भी हम नहीं समझ पाते....आभार

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  6. बहुत बढ़िया.. बेटा बेटी एक समान

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