कुछ बाते कही तुमने ,
कुछ रह गई अनकही।
मन की कही भी ,
और रह गई मन की मन में।
दूर बैठा कोई कैसे
सुनता - कहता है
समझता भी कैसे है !
बिना चिठ्ठी ,
बिना तार
कैसे होता है संचार ।
बातें जो कही
वह तो सुन ही नहीं पाई
अन कहा ही
देता रहा सुनाई।
खामोशी में जो
कोलाहल होता है
वह बतकही में कहाँ !
कुछ रह गई अनकही।
मन की कही भी ,
और रह गई मन की मन में।
दूर बैठा कोई कैसे
सुनता - कहता है
समझता भी कैसे है !
बिना चिठ्ठी ,
बिना तार
कैसे होता है संचार ।
वह तो सुन ही नहीं पाई
अन कहा ही
देता रहा सुनाई।
खामोशी में जो
कोलाहल होता है
वह बतकही में कहाँ !
बहुत बढिया..उपासना जी..
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तति का लिंक 02-04-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1936 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दूर बैठा कोई कैसे
ReplyDeleteसुनता - कहता है
समझता भी कैसे है !
बिना चिठ्ठी ,
बिना तार
कैसे होता है संचार ।
ultimate lines...superb.
सुन्दर ...नमस्ते दी
ReplyDeleteबातें जो कही
ReplyDeleteवह तो सुन ही नहीं पाई
अन कहा ही
देता रहा सुनाई।
खामोशी में जो
कोलाहल होता है
वह बतकही में कहाँ !
बहुत गहरी बात आपने कितनी सादगी से कह दी ......
इस बेहतरीन रचना के लिए मेरी शुभकामनायें स्वीकारिए ......