Wednesday 30 April 2014

नन्हा..

मैं छोटा सा ,नन्हा सा
और माँ कहती है
प्यारा सा
  बच्चा हूँ

प्यारा सा बच्चा हूँ !
फिर भी
माँ स्कूल के
लिए जल्दी
जगा कर तैयार
करती !

पता नहीं ये स्कूल
किसने बनाया होगा
मुझे तो कुछ भी
समझ आता
उससे पहले ही
टीचर जी लिखा
मिटा देती है 

अब लिखा नहीं तो
कान भी मरोड़
देती है 
 लाल - लाल
कान लेकर घर
जाता हूँ तो
माँ आंसू भर के
गले लगा कर डांटती
है तो मुझे
अच्छा लगता है क्या !

जब मैंने माँ को बताया ,
आज नालायक बच्चों
को एक तरफ बिठाया
उनमें से मैं भी एक था ..

पूछ बैठा कि माँ
यह नालायक क्या होता है !
तो बस, माँ रो ही पड़ी ,
गले से लगा कर बोली
तुझे कहने वाले ही है रे
मेरे लाल !

मैं अब भी नहीं समझा 
टीचर जी ने ऐसा क्यूँ कहा.. 

Saturday 19 April 2014

तुम अब कहीं नहीं

तुमने पूछा
तुम कहाँ हो !
तुम अब कहीं नहीं। 

तुम्हें भूले हुए
एक अर्सा हुआ
अब कोई याद बाकी नहीं। 

तुम्हें तो मैंने 
उसी वर्ष भुला दिया था 
जिसमे तेरहवां महीना था। 

जब फरवरी में 
तीसवीं तारीख आई थी। 

जिस वर्ष 
तीन सौ पैंसठ की बजाय 
तीन सौ सड़सठ दिन थे। 

फिर भी पूछते हो कि 
तुम कहाँ हो ?