मैं छोटा सा ,नन्हा सा
प्यारा सा बच्चा हूँ !
पता नहीं ये स्कूल
जब मैंने माँ को बताया ,
पूछ बैठा कि माँ
मैं अब भी नहीं समझा
और माँ कहती है
प्यारा सा
बच्चा हूँ
प्यारा सा बच्चा हूँ !
फिर भी
माँ स्कूल के
लिए जल्दी
जगा कर तैयार
करती !
पता नहीं ये स्कूल
किसने बनाया होगा
मुझे तो कुछ भी
समझ आता
उससे पहले ही
टीचर जी लिखा
मिटा देती है
अब लिखा नहीं तो
कान भी मरोड़
देती है
लाल - लाल
कान लेकर घर
जाता हूँ तो
माँ आंसू भर के
गले लगा कर डांटती
है तो मुझे
अच्छा लगता है क्या !
जब मैंने माँ को बताया ,
आज नालायक बच्चों
को एक तरफ बिठाया
उनमें से मैं भी एक था ..
पूछ बैठा कि माँ
यह नालायक क्या होता है !
तो बस, माँ रो ही पड़ी ,
गले से लगा कर बोली
तुझे कहने वाले ही है रे
मेरे लाल !
मैं अब भी नहीं समझा
टीचर जी ने ऐसा क्यूँ कहा..
प्यारी कविता.....बच्चों के मन की कहती :)
ReplyDeleteमाँ यशोदा की याद आ गई !
ReplyDeleteबाल सुलभ मन की मोहक बैटन को रचना में उतारा है .... बहुत खूब ...
ReplyDeleteप्यारी सी कविता..
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 03/05/2014 को "मेरी गुड़िया" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1601 पर.
भावों से नाजुक शब्द......बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteRecent Post वक्त के साथ चलने की कोशिश
बहुत सुंदर भावभीनी कविता।
ReplyDeleteअबोध बालक के मन की व्यथा को उकेरती सुन्दर कविता
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