कभी बुत देखा है क्या ...
चुप -खामोश
रुका -ठहरा सा
चुप सा दिखता है।
न जाने क्या सोचता रहता है
पत्थर का शरीर है
तो क्या
मन भी पत्थर का ही होगा !
पत्थर के शरीर में
क्या आत्मा भी
पत्थर की ही निवास करती है !
धूप -बारिश
ठण्ड-कोहरे का कोई तो
असर होता होगा।
सुबह के सुहाने मौसम का
चिड़ियों के कलरव से
उसका मन भी पुलकित होता होगा।
बहार के सुहाने मौसम में
सावन की फुहारों से
उसका मन भी तो भीग जाता होगा।
देखिये कभी गौर से
बुतों की पथराई नज़रे और होठ
कुछ न कुछ कहते
सुनाई जरुर देंगे
आखिर वे भी तो कभी इंसान रहे होंगे।
चुप -खामोश
रुका -ठहरा सा
चुप सा दिखता है।
न जाने क्या सोचता रहता है
पत्थर का शरीर है
तो क्या
मन भी पत्थर का ही होगा !
पत्थर के शरीर में
क्या आत्मा भी
पत्थर की ही निवास करती है !
धूप -बारिश
ठण्ड-कोहरे का कोई तो
असर होता होगा।
सुबह के सुहाने मौसम का
चिड़ियों के कलरव से
उसका मन भी पुलकित होता होगा।
बहार के सुहाने मौसम में
सावन की फुहारों से
उसका मन भी तो भीग जाता होगा।
देखिये कभी गौर से
बुतों की पथराई नज़रे और होठ
कुछ न कुछ कहते
सुनाई जरुर देंगे
आखिर वे भी तो कभी इंसान रहे होंगे।
बहुत ही अच्छा भाव , व प्रभावी लेखन , उपासना जी धन्यवाद !
ReplyDeleteनवीन प्रकाशन - ~ रसाहार के चमत्कार दिलाए १० प्रमुख रोगों के उपचार ~ { Magic Juices and Benefits }
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (03-05-2014) को "मेरी गुड़िया" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1601 में अद्यतन लिंक पर भी है!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जादूगरनी ने जिस राजकुमार को जादू से पत्थर का बुत बना दिया था, आप शायद उसकी बात कर रही हैं ? ! .......
ReplyDeleteकल्पनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति .......
शुभकामनायें ......
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबुत तो बुत ही ठहरे क्या कहेंगे?यह तो अपने मन का मात्र अहसास ही है
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