कल रात बहुत बारिश हुई
गीला सा मौसम
चहुँ ओर गीला -गीला सा आलम।
भिगोया तन
बरसती बारिश ने
भिगो ना सकी लेकिन
मन को और
मन में फैले रेगिस्तान को।
फैली हथेलियाँ
बारिश को समेटने को आतुर थी
लेनी थी महक सोंधी -सोंधी सी।
मन को ना छू सकी
गिर गई छू कर हथेलियाँ को ही ,
वह महक ना जाने क्या हुई !
बाहर बारिश थी ,
अंतर्मन में थे
तपते रेगिस्तान की
आँधियों के उठते बवंडर
तो वे बूंदे मन को छूती ही क्यूँ !
हैरान हूँ फ़िर भी मैं !
बारिश ने मन को ना भिगोया
फिर मेरे नयनों में
आंसुओ का साग़र कहाँ से उमड़ा।
गीला सा मौसम
चहुँ ओर गीला -गीला सा आलम।
भिगोया तन
बरसती बारिश ने
भिगो ना सकी लेकिन
मन को और
मन में फैले रेगिस्तान को।
फैली हथेलियाँ
बारिश को समेटने को आतुर थी
लेनी थी महक सोंधी -सोंधी सी।
मन को ना छू सकी
गिर गई छू कर हथेलियाँ को ही ,
वह महक ना जाने क्या हुई !
बाहर बारिश थी ,
अंतर्मन में थे
तपते रेगिस्तान की
आँधियों के उठते बवंडर
तो वे बूंदे मन को छूती ही क्यूँ !
हैरान हूँ फ़िर भी मैं !
बारिश ने मन को ना भिगोया
फिर मेरे नयनों में
आंसुओ का साग़र कहाँ से उमड़ा।
बढ़िया सुंदर रचना , आ. उपासना जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_14.html
ReplyDeleteमन के तपते रेगिस्तान को शांत करने का उपाय स्नेह की शीतल छाया है...जो भौतिकतावाद की बलि चढ़ गई...
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDeleteअन्तिम चार पंक्तियाँ ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबेटी बन गई बहू
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-05-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
गहरी अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteबेहद गंभीर और गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteBlogging ke bare me aur janne ke liye yaha aye
http://www.techguyz.org/search/label/blogger
Zabardast abhivyakti......
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