Sunday 6 March 2016

खो गए हैं अब वो स्वप्निल से पल !

सभी कुछ तो है
अपनी - अपनी जगह ,
सूरज
चाँद
सितारे
बादल !

फिर !
क्या खोया है !

हाँ !
कुछ तो खोया है।

या
सच में ही खो गया है !

कुछ पल थे
ख़ुशी के ,
पाये भी नहीं थे 
कि
खो गए !

सपने से
दिखने वाले अब
दीखते हैं सपने में !


चमकते सितारों से
नज़र आते हैं बुझी राख से ....
खो गए हैं अब
वो स्वप्निल से पल !