प्रेम
तुम आशा हो
मन की प्रिया हो
तन-मन को जो बांधे
वो एकता हो।
प्रेम
तुम नील -गगन की
नीलिमा में हो
मन की अपार शांति में हो।
प्रेम
बस तुम हो
कभी -कभी ही नहीं
हमेशा ही कायम हो।
तुम आशा हो
मन की प्रिया हो
तन-मन को जो बांधे
वो एकता हो।
प्रेम
तुम नील -गगन की
नीलिमा में हो
मन की अपार शांति में हो।
प्रेम
बस तुम हो
कभी -कभी ही नहीं
हमेशा ही कायम हो।
सच कहा है ... जहां कुछ भी नहीं वहां प्रेम तो है ही ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
प्रेम रंग रंगी पंक्तियां ...अनुपम
ReplyDeleteवाह, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्रेम से ही तो सब हैं.
ReplyDeleteप्रेम अमर हैं अमर प्रेम हैं...
Behtrin
ReplyDeleteBehtrin
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