लाचार, बेबस, कृशकाय ,
जर्जर वृद्ध ,
अपनी अवस्था को
झेलता ...
अपने कमरे की
धुंधली रौशनी में
अपने अंदर छाये
घने अँधेरे में एक प्यार
की किरण तलाशता ...
बाहर से उठती
तेज़ आवाजों में
पानी के लिए तरसती
अपनी आवाज़ को
को कहीं खोता ...
बिस्तर से उठने की
नाकाम
कोशिश करता
अचानक हूक सी उठी
दिल में
बद-दुआ सी जागी मन
में ...
बरबस
दीवार पर धूल जमी
अपने बाबूजी की तस्वीर
में से झांकती ,व्यंग से
चमकती आँखे देख
दिल
शर्म ,पश्चाताप ,
आँखे दुख
के आंसुओं से भर आयी ...
जर्जर वृद्ध ,
अपनी अवस्था को
झेलता ...
अपने कमरे की
धुंधली रौशनी में
अपने अंदर छाये
घने अँधेरे में एक प्यार
की किरण तलाशता ...
बाहर से उठती
तेज़ आवाजों में
पानी के लिए तरसती
अपनी आवाज़ को
को कहीं खोता ...
बिस्तर से उठने की
नाकाम
कोशिश करता
अचानक हूक सी उठी
दिल में
बद-दुआ सी जागी मन
में ...
बरबस
दीवार पर धूल जमी
अपने बाबूजी की तस्वीर
में से झांकती ,व्यंग से
चमकती आँखे देख
दिल
शर्म ,पश्चाताप ,
आँखे दुख
के आंसुओं से भर आयी ...
सच है ,जब खुद पर गुज़रती है तब एहसास होता है लेकिन तब तक समय हाथ से निकल गया होता है ,
ReplyDeletesachchai hamesha kadhvi hoti hai..chahe aap usko mano ya na mano...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना ! दिल को द्रवित कर गयी ! बहुत खूब !
ReplyDeleteकिसी दूसरे को देख अपने पिता की तस्वीर उभारता है तो इससे बढिया क्या होगा। आपकी कविता को पढ इंसानीयत शेष होने का एहसास हो गया।
ReplyDeleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteमन को द्रवित करती बहुत,उम्दा प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
काफी अच्छी कविता
ReplyDelete
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना !
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post मंत्री बनू मैं
LATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
बुढ़ापा वाकई दुःख दाई होता है,अपने अतीत को टटोलता जिन्दा रहता है
ReplyDeleteमार्मिक और भावुक रचना
सादर
आग्रह है
गुलमोहर------
क्रूर बुढ़ापा ....सबको अपनी चपेट में लेता है
ReplyDeleteयह तो क्रम है किन्तु इस पर सदैव सजग होना चाहिए
ReplyDeleteस्मृतिओं को झकझोरती रचना
ReplyDeletetouchy one
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
सुन्दर प्रस्तुति..।
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!
जब तक अपने ऊपर न बीते इंसान भूला रहता है,समझ में आता है तब सुधारने का अवसर बीत चुका होता है -यही जीवन की त्रासदी है!
ReplyDeletesundar aur marmik prastuti..... saath hi uttam shabd chayan
ReplyDeletemarmik rachna....
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteगुजरा हुआ समय आमने आ जाता है अक्सर ... और आइना खड़ा कर देता है ..
ReplyDeleteमर्मस्पर्शीय ...