Monday, 3 June 2013

जिन्दगी की किताब ...

जिन्दगी की किताब
खोल कर जो देखी
तो ना जाने
कितनी यादों के
सूखे फूल 
महकते नज़र आये ...
कुछ पन्ने
आसमानी
नज़र आये तो 
कुछ हल्के गुलाबी ...

 जो पन्ने
कभी खोल कर  भी नहीं देखे
अब वो 
बैंगनी नज़र आये ...

झिलमिलाते पन्नों को
 पलटा तो कुछ 
सितारे बिखरे हुए से दिखे ,
वो सितारे उठा कर
मैंने आपने दामन 
में टांक लिए ...

जिन्दगी की किताब
को पढ़ा,
 पर उठा कर 
फिर से ताक पर नहीं रखा ...

अब इस किताब को
साथ-साथ पढना और 
जीना चाहती हूँ ,
फिर से यादों के फूलों
को सूखने नहीं देना 
चाहती .........

22 comments:

  1. यादें ही तो साथ रह जाती हैं बाकी तो सब साथ छोड़ जाते हैं | लाजवाब रचना | आभार

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  2. ज़िन्दगी की किताब का हर सफहा तुमसे...हर लफ्ज़ तुम पर......

    सुन्दर एहसास....
    अनु

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  3. बहुत ही खूबसूरत और भावपूर्ण रचना. पढकर कहीं से आनंद फिल्म के एक दृश्य की याद आ गयी जिसमे राजेश खन्ना अपनी गीतों की डायरी में से एक फूल निकालकर यादों में डूब जाता है. पढकर अच्छा लगा.

    -अभिजित (Reflections)

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  4. बहुत ही भाव पूर्ण रचना ,बहुत खूब

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  5. आपकी सर्वोत्तम रचना को हमने गुरुवार, ६ जून, २०१३ की हलचल - अनमोल वचन पर लिंक कर स्थान दिया है | आप भी आमंत्रित हैं | पधारें और वीरवार की हलचल का आनंद उठायें | हमारी हलचल की गरिमा बढ़ाएं | आभार

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  6. बहुत नाज़ुक सी रचना ! ज़िंदगी की किताब का हर लफ्ज़ सितारों सा जगमगाए और यादों के फूल हमेशा तरोताजा रहें यही दुआ है ! आमीन !

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  7. https://twitter.com/prashantchoub13

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  8. http:/prashant3.blogspot.in

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  9. ज़िंदगी की क़िताब, हर दम साथ...बहुत सुन्दर

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  10. यादों की ये किताब संभाल के रखना

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  11. जिन्दगी की किताब के पन्ने रंग बिरंगे होते तो हैं पर उन पन्नों पर
    जीवन का संघर्ष लिखा होता है
    वाह गहन अनुभूति की रचना
    सादर

    आग्रह है
    गुलमोहर------

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  12. वाह!बहुत सुन्दर रचना

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  13. सुन्दर रचना

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  14. जिंदगी की किताब ऐसी ही होती है जिसे जीने का मन करता है ... बार बार ...

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