Monday, 1 July 2013

पूनम के चाँद का इंतजार है मुझे ...

अब तुम्हें क्या बताऊँ 
कितना इंतजार करती हूँ 
तुम्हारा 
और तुम हो कि  
 अपना चेहरा दिखला  कर 
फिर से गुम हो जाते हो ...

सोचा था 
इस बार जब तुम आओगे 
थाम कर हाथ तुम्हारा 
छत पर ले कर जाऊँगी ...

और कह दूंगी 
अपने मन की बात 
तुम्हारा चेहरा नहीं देखा जाता 
अब मुझसे  चाँद में ...

अब 
आंचल में 
बाँध कर 
चाँद को ही 
रखना पास रखना  हैं ...
 तुम तो चंद्रमाँ  की 
बढती कलाओं 
की तरह आये 
घटती कलाओं की 
तरह चले गए ...
छोड़ गए बस यादों 
और इंतजार की
काली अमावस की रात ,
अब   फिर से तुम्हारे 
साथ -साथ 
पूनम के चाँद का 
इंतजार है मुझे ...
( चित्र गूगल से साभार )

14 comments:

  1. आपकी रचना कल बुधवार [03-07-2013] को
    ब्लॉग प्रसारण पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
    सादर
    सरिता भाटिया

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    1. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
      आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (03-07-2013) के .. जीवन के भिन्न भिन्न रूप ..... तुझ पर ही वारेंगे हम .!! चर्चा मंच अंक-1295 पर भी होगी!
      सादर...!
      शशि पुरवार

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  2. बहुत सुंदर रचना
    बहुत सुंदर

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  3. सुंदर सृजन, उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई ,,,उपासना जी..

    RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.

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  4. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति

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  5. बहोत सुन्दर रचना.........

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  6. बहुत सुन्दर...

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  7. बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति

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  8. बहुत सुंदर रचना , आभार



    यहाँ भी पधारे ,http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html

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  9. बेहतरीन चाहत लाजवाब वाह क्या कहने

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  10. ये गुम हो जाने की प्रवृति कितनी बुरी है है न !....

    लगता है इतनी भी बुरी नहीं !.....

    कुछ न कुछ तो पनपता ही है इससे ......

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  11. बहुत सुन्दर .. बधाई

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