प्यार को तुम्हारे
बना कर चिड़िया
पाला था मैंने ,
कर के बंद पिंजरे में ...
आशा के दाने ,
भ्रम का पानी
पिलाती रही बरसों
तुम्हारे आने की आस लिए ...
कुछ रेशमी तारों से
बुनती रही तुम्हारे
अहसास को
अपने आस - पास ...
मुक्त कर दिया ,
लो मैंने आज
इस चिड़िया को
,
उड़ा दिया दूर गगन में ...
उलझा दिए फिर भी कुछ
रेशमी तार
तुम्हारे अहसास के ,
बचे हैं कुछ अभी भी मेरे
पास आशा के दाने
भ्रम का पानी ...
बना कर चिड़िया
पाला था मैंने ,
कर के बंद पिंजरे में ...
आशा के दाने ,
भ्रम का पानी
पिलाती रही बरसों
तुम्हारे आने की आस लिए ...
कुछ रेशमी तारों से
बुनती रही तुम्हारे
अहसास को
अपने आस - पास ...
मुक्त कर दिया ,
लो मैंने आज
इस चिड़िया को
,
उड़ा दिया दूर गगन में ...
उलझा दिए फिर भी कुछ
रेशमी तार
तुम्हारे अहसास के ,
बचे हैं कुछ अभी भी मेरे
पास आशा के दाने
भ्रम का पानी ...
सुन्दर लेख
ReplyDeleteप्यार को बना कर चिड़िया पाला था मेने
ReplyDeleteप्यार को तुम्हारे बना कर चिड़िया पाला था मेने
ReplyDeleteबहुत सुंदर, शुभकामनाये
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत ही सुन्दर रचना..
ReplyDeleteमनभावन...
:-)
बहुत सुंदर , मंगलकामनाये
ReplyDeleteजब तक भ्रम बना रहे अच्छा है...
ReplyDeleteसुंदर...
आपकी यह पोस्ट आज के (१७ जुलाई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - आफिसर निर्मलजीत सिंह शेखो को श्रद्धांजलि पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।
ReplyDeleteek nirala andaj !
ReplyDeletesundr prastuti !!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..मेरी नई पोस्ट अभिव्यंजना में.".कदम धरती पर ,मन में आसमान हो"
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