परछाइयों को
पकड़ने तो चली ,
परछाइयाँ कब हुई
अपनी ,
अपनी न हुई
पकड़ना तो फिर भी
चाहा …
चाहा साथ निभाने की
शर्त लिए
साथ दिखाई तो देती रही
साथ फिर भी ना निभाया
इन परछाइयों ने …
कभी आगे
कभी पीछे
कभी -कभी क़दमों तले
होने का भान रहता सदा
कदम से कदम ना मिलाया
इन परछाइयों ने …।
ग़मों को बदली हो
दुःख का अँधेरा हो
साथ चलती परछाइयां
हो जाती गम
एक कदम भी साथ ना निभाया
इन परछाइयों ने …….
कौन किसका साथ देता है
कब तक देता है
इन्सान यूँ ही भागता रहता है
इन परछाइयों को पकड़ता ……
पकड़ने तो चली ,
परछाइयाँ कब हुई
अपनी ,
अपनी न हुई
पकड़ना तो फिर भी
चाहा …
चाहा साथ निभाने की
शर्त लिए
साथ दिखाई तो देती रही
साथ फिर भी ना निभाया
इन परछाइयों ने …
कभी आगे
कभी पीछे
कभी -कभी क़दमों तले
होने का भान रहता सदा
कदम से कदम ना मिलाया
इन परछाइयों ने …।
ग़मों को बदली हो
दुःख का अँधेरा हो
साथ चलती परछाइयां
हो जाती गम
एक कदम भी साथ ना निभाया
इन परछाइयों ने …….
कौन किसका साथ देता है
कब तक देता है
इन्सान यूँ ही भागता रहता है
इन परछाइयों को पकड़ता ……
bahut hi sunder
ReplyDeleteपरछायी तो परछायी होती है..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट आज के (३० जुलाई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - एक बाज़ार लगा देखा मैंने पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDelete
ReplyDeleteछाया तो छाया है ,ईमानदारी से साथ निभाता है
latest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
उम्दा है आदरेया-
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी रचना...
ReplyDeleteएकदम सही....
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना...
:-)
बहुत खूब,भावपूर्ण अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
भ्रम होता है बहुत कुछ
ReplyDeleteअक्सर हमें अकेले ही बहुत कुछ सहना होता है, चलना होता है
ऐसी परछाईयाँ तो मिलती ही रहेंगी ..
सुन्दर !
परछाईयो को कोन पकड़ पाया है , बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html
बहुत सही कहा परछाई तो परछाई ही होती है ....
ReplyDeleteपरछाईओं के पीछे भागते खुद अपनी पहचान खो जाती है !
ReplyDeleteबढ़िया !
बहुत खूब कहिन
gajab ki haqikat
ReplyDeleteमेरा साया भी मुझसे शिकायत करता हैं :))) बहुत उम्दा
ReplyDeleteWah wah kya bat hai
ReplyDeleteWah wah kya bat hai
ReplyDelete