यादों के दरख्तों की पत्तियां
ना कभी पीली पड़ती है
ना ही गिर कर
यहाँ -वहां बिखरती है ......
हर रोज़ एक नयी पत्ती
उभर आती है याद की तरह
दरख्त को अपने लपेटे
में लेती हुयी ...
गर छू भी लो
इन पत्तियों को
छिल जाते है घाव
रिस पड़ता है यादों का लहू ...
यह दरख्त ना छाँव देता है
ना राहत ...!
कुछ दे सुस्ताना भी चाहो
यादों की धूप में मन
झुलसता ही जाता है ...
झुलसती यादें ... बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteकिसी कवि की रचना देखूं !
ReplyDeleteदर्द उभरता , दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
क्लेश हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दूं ,टिप्पणियों में, रोते गीत !
निज रचनाएं ,दर्पण मन का, दर्द समझते मेरे गीत !
वाह बहुत बढिया, सुन्दर रचना..
ReplyDeleteअच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुभूति
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteखुबसूरत भावो की अभिवय्क्ति…।
ReplyDeleteयादों की धूप में मन झुलसता ही जाता है ... बहुत सुन्दर अभिवक्ति, बधाई आप को
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
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ReplyDeleteयादों के पतझड़ में पेड़ से क्या मिलेगा ?सुन्दर अभिवक्ति!
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बहुत सुंदर भाव...
ReplyDeleteयादों की पत्तियों पे कभी पतझड नहीं आता .... ताज़ा रहती हैं ये ...
ReplyDeleteखुशबू लिए ...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार २६ मई 2016 को में शामिल किया गया है।
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !