कसमें ली जाती हैं
हर रोज़
तुम्हें न देखने की
न मिलने की
और तुम्हें ना
सोचने की भी....
रोज़ की ली हुई
कसमें
टूट जाती है
या
तोड़ दी जाती हैं.....
सुबह सूरज के
उगने पर,
रात को चाँद के
आ जाने पर......
सूरज/ चाँद का
तुमसे कोई रिश्ता है क्या !
कि कसम ही टूट
जाती है !
हर रोज़
तुम्हें न देखने की
न मिलने की
और तुम्हें ना
सोचने की भी....
रोज़ की ली हुई
कसमें
टूट जाती है
या
तोड़ दी जाती हैं.....
सुबह सूरज के
उगने पर,
रात को चाँद के
आ जाने पर......
सूरज/ चाँद का
तुमसे कोई रिश्ता है क्या !
कि कसम ही टूट
जाती है !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-08-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2431 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-08-2016) को "भाव हरियाली का" (चर्चा अंक-2432) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
rishte me kashish hai ...
ReplyDeleteदिल का रिश्ता कसमों से नहीं बंध पाता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत ही अच्छा post है, share करने के लिए धन्यवाद। :) :)
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