समुन्दर से
मन की लहरें
भागती है क्यूँ
बार -बार
किनारे की तरफ !
तम्हें तलाशती है !
सच में !
या
शायद उनको
मालूम है
तुम्हारा वहां आ जाना
बिन बताये
बिन आहट !
क्यूंकि तुम
जाने - अनजाने में
रेत पर कदमों
के निशां
जो छोड़ जाते हो !
मन की लहरें
भागती है क्यूँ
बार -बार
किनारे की तरफ !
तम्हें तलाशती है !
सच में !
या
शायद उनको
मालूम है
तुम्हारा वहां आ जाना
बिन बताये
बिन आहट !
क्यूंकि तुम
जाने - अनजाने में
रेत पर कदमों
के निशां
जो छोड़ जाते हो !
क्या कहने......
ReplyDeleteजाने - अनजाने में
रेत पर कदमों
के निशां
जो छोड़ जाते हो !
Waah
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteरेत पे पड़े क़दमों से ही उनके आने का एहसास हो जाता है ....
ReplyDeleteबहुत खूब ...
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