मन भागता है
अनन्त की ओर
अनदेखे -अनजाने
पथ की ओर
निर्वात की ओर !
देखता है
प्राणों का देह से
विलग होना
और
देखता है
देह को विदेह होते !
यह देह का
विदेह हो जाना
मन का अनन्त की ओर
भटकना ,
प्रेम की पराकाष्ठा है।
शायद !
अनन्त की ओर
अनदेखे -अनजाने
पथ की ओर
निर्वात की ओर !
देखता है
प्राणों का देह से
विलग होना
और
देखता है
देह को विदेह होते !
यह देह का
विदेह हो जाना
मन का अनन्त की ओर
भटकना ,
प्रेम की पराकाष्ठा है।
शायद !
बहुत सुंदर.
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