Saturday, 13 February 2016

प्रेम की पराकाष्ठा है ...

मन भागता है
अनन्त  की ओर
अनदेखे -अनजाने
पथ की ओर
निर्वात की ओर !

देखता है
प्राणों का देह से
विलग होना
और
देखता है
देह को विदेह होते !

यह देह का
विदेह हो जाना
मन का अनन्त की ओर
भटकना ,
प्रेम की पराकाष्ठा है।
शायद !

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