भोर से साँझ
सूरज की सिंदूरी - सुनहरी बिंदी से शुरू
चाँद की रुपहली बिंदी पर खत्म
एक औरत का जीवन।
सूरज की बिंदी देखने की
फ़ुरसत ही कहाँ !
सरहाने पर या माथे पर
खुद की बिंदी और खुद को भी संभालती
चल पड़ती है दिन भर की खट राग की लय पर।
दिन भर की खट राग पर
पैरों को पर बना कर दौड़ती
कभी मुख पर चुहाते पसीने को पोंछती
आँचल को मुख पर फिराती ,
सरक जाती है जब बिंदी माथे से
जैसे सूरज पश्चिमांचल को चल पड़ा
या मन ही कहीं बहक पड़ा हो ,
थाली में देख कर ही
अपनी जगह कर दी जाती है बिंदी।
सारे दिन की थकन
या ढलते सिंदूरी सूरज की लाली ,
चेहरे के रंग में रंग जाती है बिंदी।
सिंदूरी रंग से रंगी बिंदी
चाँद की बिंदी से झिलमिला जाती है
मन का कोना तो
तब भी अँधियारा सा ही रहता है।
अपने माथे की बिंदी सहेजती ,
अगले दिन के सपने बुनती
चाँद की बिंदी को
उनींदी अँखियों से देखती
जीवन राग में कहीं खो जाती ,
बिंदी से शुरू बिंदी पर ख़त्म
जीवन बस यूँ ही बीत जाता।
सही चित्रण एक व्यस्त नारी की .... बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Deleteबिंदी से शुरू बिंदी पर ख़त्म
ReplyDeleteजीवन बस यूँ ही बीत जाता।
आम स्त्री के जीवन का सटीक और मर्मस्पर्शी रेखांकन
हार्दिक धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार- 20/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 37 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
हार्दिक धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-10-2014) को "तुम ठीक तो हो ना.... ?" (चर्चा मंच-1772) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच बहुत सुन्दर --- <3 अपने माथे की बिंदी सहेजती ,
ReplyDeleteअगले दिन के सपने बुनती
चाँद की बिंदी को
उनींदी अँखियों से देखती
जीवन राग में कहीं खो जाती ,
बिंदी से शुरू बिंदी पर ख़त्म
जीवन बस यूँ ही बीत जाता।
हार्दिक धन्यवाद DI
DeleteBehad bhaawpurn umdaa rachna !!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Deleteजीवन बस् यूँ ही बीत जाता है ...............अति सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteनारी जीवन का सच लिखा है ... यूँ ही जीवन गुज़र जाता है ...
ReplyDeleteआपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ...
आपको भी दीपावली की राम-राम...
Deleteनारी जीवन का बहुत सटीक और प्रभावी चित्रण...लाज़वाब प्रस्तुति..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Deleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteआपको भी दीपावली की राम-राम...
Deleteअनुपम प्रस्तुति....आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं
आपको भी दीपावली की राम-राम....
Deleteवैसे जीवन तो है ही बिंदी (शून्य ) से जन्मा और बिंदी (शून्य ) मे विलीन होने के लिए ....
ReplyDeleteजीवन का बीत जाना शाश्वत है अब यूं ही बीते या क्यूँ कर बीते या कुछ कर बीते ...... !
मानना पड़ेगा आपका कवि मन कल्पना मे कहाँ कहाँ पहुंचता है और शब्दों मे गूढ भाव अभिव्यक्त कर जाता है ...... प्रशंसनीय !
आपको दीवाली की ढेरों शुभकामनाएँ ! ....
- 'जाना पहचाना अंजाना'
बहुत शुक्रिया " जाने पहचाने अनजाने जी " जरा नाम भी पता चल जाता तो बहुत अच्छा रहता ....समय के साथ और उम्र के साथ भी स्मृतियाँ धुंधलाने लग जाती है ...इसलिए नाम भी बता दीजिये ......आपको भी दीपावली की राम-राम :-)
Deleteजब अंजाना, जाना पहचाना सा हो तो नाम की क्या आवश्यकता !
Deleteअंजान का अपना सा पन किसी किसी को ही नसीब होता है.....
:-)
शुभकामनायें
nari jiwan ko kis khubsurti se aapne chitrit kiya hai....wah
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से उकेरा है आपने नारी की व्यस्तता का चित्र...
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