बंद दरवाजे पर
दस्तक दी जाती रही
दरवाजा नहीं खुला ।
मगर
दरवाजे के उस पार
आवाज़ें थी , हलचल थी
फिर दरवाजा क्यों नहीं खुला !
दरवाजे खुलने की कुछ शर्त थी शायद
जब दोनों तरफ कुन्डी लगी थी
मजबूत ताले थे
तो दस्तक का औचित्य ही क्या था !
क्या यह मात्र औपचारिकता थी
या सुलह की पहल
मालूम नहीं !
दस्तक अब भी दी जा रही है
कुन्डीयों , तालों के टूटने का इंतज़ार है ...
दस्तक दी जाती रही
दरवाजा नहीं खुला ।
मगर
दरवाजे के उस पार
आवाज़ें थी , हलचल थी
फिर दरवाजा क्यों नहीं खुला !
दरवाजे खुलने की कुछ शर्त थी शायद
जब दोनों तरफ कुन्डी लगी थी
मजबूत ताले थे
तो दस्तक का औचित्य ही क्या था !
क्या यह मात्र औपचारिकता थी
या सुलह की पहल
मालूम नहीं !
दस्तक अब भी दी जा रही है
कुन्डीयों , तालों के टूटने का इंतज़ार है ...
सुन्दर रहस्य बोध और बहुत गंभीर रचना
ReplyDeleteदरवाजे खुलने की कुछ शर्त थी शायद
ReplyDeleteजब दोनों तरफ कुन्डी लगी थी
मजबूत ताले थे
तो दस्तक का औचित्य ही क्या था !
...बहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति...
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteविजयादशमी की शुभकामनायें!
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/10/2014-6.html
ReplyDeleteबहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteBahut sunder rachna ..... Baadhayi !!
ReplyDeleteI do consider all of the ideas you have introduced in your post.
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बहुत बढ़िया
ReplyDeletewaah! kya khub
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