शब्द बिखरे पड़े हैं
इर्द -गिर्द
मेरे और तुम्हारे।
चुप तुम हो,
चुप मैं भी तो हूँ..
कुछ शब्द
चुन लिए हैं
मैंने तुम्हारे लिए
लेकिन
बंद है मुट्ठी मेरी ,
मेरी जुबान की तरह ।
रहने दो बेजुबान
मेरे शब्दों को
जब तक कि
तुम चुन ना लो
कुछ शब्द मेरे लिए ...
बहुत बढिया ..
ReplyDeleteWaah... Jab tak tum na kaho main kyun kahun.. Bahut sunder prastuti....!!!
ReplyDeleteवाह गज़ब की वफ़ादार
ReplyDeleteरहने दो बेजुबान
मेरे शब्दों को
जब तक कि
तुम चुन ना लो
कुछ शब्द मेरे लिए ..
इस अबोले को तोड़ने के लिये किसीको तो पहल करनी ही होगी ! क्यों न आप ही जुबान दे दें अपने शब्दों को ! सोचने को विवश करती बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteBahut Sunder....
ReplyDeleteअभिव्यक्ति की पूर्णता के लिए दोनों पक्षों को भागीदारी आवश्यक है .
ReplyDeleteओह... चुप ही रहने दो.. समझ सको तो समझो... मैं की भाषा ..
ReplyDeleteगजब
शब्दों की अनवरत और....खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteजब तक कि
ReplyDeleteतुम चुन ना लो
कुछ शब्द मेरे लिए ...,सुंदर रचना !
बहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteaah...behad sundar
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना !....
ReplyDeleteएक प्रतिउत्तर मेरी और से भी ....
चुप तुम हो, चुप मैं हूँ
जरूरत है कहाँ शब्दों की
शब्द तो मात्र ध्वनि हैं
नहीं जरूरत भावों को इसकी
नहीं रोक सकता कोई बंद
आवाज़ चुप की,
हमारे चुप की ......
शुभ कामनाएँ !
बहुत खूब
ReplyDeleteचुप्पिओं को तोड़ती चुप्पी