उस रात चाँद चुप सा था
सितारे भी थे खामोश से
हवा भी दम साधे हुए थी ।
सन्नाटे में
कोई तो था
जो चुपके से आया
मन के
कोरे कागज़ पर
बिन कलम , बिना सियाही
लिख गया था
कुछ लेख ।
लेकिन
यह कैसा लेख था
जो लिखा तो है
पढ़ा क्यों नहीं जाता
शायद यह किस्मत का लिखा
कोई लेख ही है ।
जो मन के कागज़ पर
ही लिखा जाता है
माथे की लकीरों पर नहीं ।
सितारे भी थे खामोश से
हवा भी दम साधे हुए थी ।
सन्नाटे में
कोई तो था
जो चुपके से आया
मन के
कोरे कागज़ पर
बिन कलम , बिना सियाही
लिख गया था
कुछ लेख ।
लेकिन
यह कैसा लेख था
जो लिखा तो है
पढ़ा क्यों नहीं जाता
शायद यह किस्मत का लिखा
कोई लेख ही है ।
जो मन के कागज़ पर
ही लिखा जाता है
माथे की लकीरों पर नहीं ।
सुन्दर रचना बहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर लेख , धन्यवाद !
ReplyDeleteआपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 1 . 10 . 2014 दिन बुद्धवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
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बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteदीखत होय हो तो हर कोई बाँचे, आखर प्रकट न होय!
ReplyDeleteBahut sunder prastuti !!
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना.
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