Wednesday 29 February 2012

अन्नपूर्णा

गहरे सांवले रंग पर

गुलाबी सिंदूर ,गोल   उपासना सियाग 

बड़ी बिंदी ...

कहीं से घिसी ,

कहीं से

सिली हुई साड़ी पहने

अपनी बेटी के साथ खड़ी 
कुछ कह रही थी
मेरी नयी काम वाली ..
कि मेरी नज़र उस के

चेहरे,गले और

बाहं पर मार की

ताज़ा-ताज़ा चोट पर

पड़ी 

और दूर तक भरी 
गहरी मांग पर भी ...

 पूछ बैठी !

कितने बच्चे है तुम्हारे ?

सकुचा कर बोली जाने दो

बीबी ...!

क्यूँ ..!

तुम्हारे ही हैं न !

या चुराए हुए ...?

और तुम्हारा

नाम क्या है,

बेटी का भी... 

वह बोली 
नहीं-नहीं बीबी ....
चुराऊँगी क्यूँ भला ..!

पूरे आठ बच्चे हैं 

ये बड़ी है !

सबसे छोटा गोद में है। 

पता नहीं मुझे क्यूँ हंसी

आ गयी !

इसलिए नहीं 

कि उसके

आठ बच्चे हैं ....

कि

अपने ही बच्चों की

 भूख के लिए
 सुबह से शाम भटकती,

"अन्नपूर्णा " और उसकी बेटी

" लक्ष्मी "...!


7 comments:

  1. कम शब्दों में ही बड़ी बात कह दी ... सच उपासना ...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया प्रतिभा दी.........

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया रमा सखी ............:0

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  3. उपासना जी ..आप अपने को सदा कम आंकती है ..औ ये आपकी विनम्रता है .....जो सदा ही ऊँचाइयों तक ले जाती है ......आप ने कमाल का लिखा है .......मेरा सलाम और ...बधाई आपको .....:)))))

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया अरुणा जी ....:)

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  4. बहुत कुछ कह दिया कुछ शब्दों में...बहुत सुन्दर

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