कल रात ढूंढा
मैंने हर जगह
कभी तारों में तो कभी
चाँद में ...
तुम्हारा ही अक्स नज़र
आया मुझे हर जगह....
निहारती रही तुम्हें ,
जब तक
नयनों में तुम ख्वाब बन कर
ना समाये ....
सुबह को ढूंढा
ओस की बूंदों पर,
तुम्हारा ही अक्स नज़र
आया मुझे
झिलमिलाती सतरंगी किरणों में।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...समर्पित प्रेम में ऐसा ही होता है..
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thank u so much kAILASH JI
ReplyDeleteBahut Khub Upasna Sakhi....Jawab nahi....Touching....
ReplyDeletethank u so much sakhi........
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeletethank u so much aruna ji
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