Saturday, 14 February 2015

प्रेम को खूंटी पर लटका दिया है मैंने....

प्रेम को
खूंटी पर लटका दिया है मैंने
झोली में डाल कर
दादी की पटारी में ।

पटारी ,
जिस में दादी
रखा करती थी
सूई , धागे और बटन ।

उधड़ते ही
जरा सी सीवन
दादी झट से सिल
दिया करती थी
वैसे ही जैसे,
पाट दिया करती थी
रिश्तों में पड़ी दरारें ।

अब मैंने भी
उसी पटारी में
प्रेम को रख दिया है
दादी की तरह
कोशिश मैं भी करती हूँ ।

जब तब
वह पटारी खोलकर
सिल देती हूँ
रिश्तों की उधड़ी
सीवन को
प्रेम को विश्वास की
सूई से ।

9 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-02-2015) को "बम भोले के गूँजे नाद" (चर्चा अंक-1891) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. प्रेम को खूंटी पर लटका दिया है मैंने.... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! साभार!
    धरती की गोद

    ReplyDelete
  3. सुन्दर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुंदर अभिव्‍यक्ति।

    ReplyDelete
  6. वाह हर शब्द दिल को छूता है ... बहुत बहुत सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
  7. नाराज़ हो कर खूंटी पर लटकती भी हो .....
    फिर प्रेम को विश्वास की सुई से सिलती भी हो .....

    ये कैसा विरोध आभास है ? ....

    विरोधाबास ये युक्त भावनाओं के द्वंद की सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी रचना .....
    शुभकामनायें ! ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. कृपया 'लटकती' को 'लटकाती' पढ़े ....
      धन्यवाद ....

      Delete
  8. आयुर्वेदा, होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा, योगा, लेडीज ब्यूटी तथा मानव शरीर
    http://www.jkhealthworld.com/hindi/
    आपकी रचना बहुत अच्छी है। Health World यहां पर स्वास्थ्य से संबंधित कई प्रकार की जानकारियां दी गई है। जिसमें आपको सभी प्रकार के पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों तथा वनस्पतियों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी पढ़ने को मिलेगा। जनकल्याण की भावना से इसे Share करें या आप इसको अपने Blog or Website पर Link करें।

    ReplyDelete