सहसा उसे
नानी का कथन
याद आ गया
"तेरा ससुराल तो
धूप में ही बाँध देंगे...!"
जब उसने देखा
दूर रेगिस्तान में
एक अकेला घर
जिस पर ना कोई साया
ना ही किसी
दरख्त की शीतल छाया ,
एक छोटी सी
आस की बदली को तरसता
वह घर .......!
और उसमे खड़ी एक औरत ...
तो क्या इसकी नानी भी
यही कहती थी...?
पर नानी मेरा घर ही
धूप में क्यूँ ,भाई का
क्यूँ नहीं ....!
शरारत तो वो भी करता है ...
इस निरुत्तर प्रश्न का
जवाब तो उसने
समय से पा लिया
पर आज फिर
नानी से यही प्रश्न करने को
मन हो आया
"
हम बेटियों का घर ही धूप में क्यूँ ...!
(चित्र गूगल से साभार )
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया राजेन्द्र कुमार जी
Deletesuperb ..... ek anutrit prashn
ReplyDeleteसही बात कही आपने नीलिमा जी ....बहुत शुक्रिया
Deleteएक अनुत्तरित प्रश्न
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...हम बेटियां ही क्यों .......क्या खता की हमने ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा ..उपासना जी ..
हम बेटियों का घर धुप मे क्यों ?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteanuttarit prashn...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआज भी इंतजार है उत्तर का...बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर उपासना जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाजवाब
ReplyDeleteसच में ऐसा क्यों !!
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति !
ना नानी ना और कोई इसका जवाब दे सकता है!
ReplyDeletelatest post'वनफूल'
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
sahi kaha apne....par uttar kisi kay pass nahi
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने .... बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसब सब के लिए नहीं होता और सब सब कुछ पचा भी नहीं पाते आपकी गरिमा धूप को सहा लेने के ही कारन बनी है ये सांत्वना नहीं अकाट्य सत्य है भाई की औकात ही नहीं की वो गर्मी को सहन कर सके , पानी प्यास बुझाता है और आग जलाता है हम उससे खाना पकाते हैं
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