Tuesday, 28 May 2013

नारी ही बांधती सभी रिश्ते -नाते ...

नाते -रिश्ते
जैसे
खड़ी दीवारें ,
तपती धूप में खड़ी
भीगती बारिश में ,
सर्द हवाओं के थपेड़े झेलती ...

नारी ही बांधती
बन कर
छत की तरह
सभी रिश्ते -नाते ...

 सभी को समेट लेती
बचा लेती ,
तपती धूप
बरसती बारिश
सर्द हवाओं के  थपेड़ों से ...

मजबूत छत
 जैसी नारी
रिश्ते मिलते उसे
बर्फ की दीवारों से ...

बचाती -समेटती
नाते - रिश्तों को
नारी के हाथ क्या रहता
एक दिन
सिवाय
पिघली बर्फ के ...!




( चित्र गूगल से साभार )

8 comments:

  1. बिलकुल ... अपने आपको मिटा देती है नारी इन रिश्तों को संवारने के लिए ...

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  2. बहुत बढ़िया रचना

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  3. वाकई में नारी छत ,छावं,स्नेह ,ममता ,माधुर्य .......को जिवंत करती है

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  4. वाकई नारी जीवन को संवारती है
    वह है तो जीवन है
    बहुत सार्थक रचना
    बधाई


    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (29-05-2013) बुधवारीय चर्चा ---- 1259 सभी की अपने अपने रंग रूमानियत के संग .....! में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. रिश्ते तो नारी ही निभाती हैं हर हल में ...

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  7. नारी हर रिश्ते को निबाहने का प्रयास करती है .....वैसे कई बार रिश्ते नारी की वजह से टूट भी जाते हैं ....

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति 

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