नाते -रिश्ते
जैसे
खड़ी दीवारें ,
तपती धूप में खड़ी
भीगती बारिश में ,
सर्द हवाओं के थपेड़े झेलती ...
नारी ही बांधती
बन कर
छत की तरह
सभी रिश्ते -नाते ...
सभी को समेट लेती
बचा लेती ,
तपती धूप
बरसती बारिश
सर्द हवाओं के थपेड़ों से ...
मजबूत छत
जैसी नारी
रिश्ते मिलते उसे
बर्फ की दीवारों से ...
बचाती -समेटती
नाते - रिश्तों को
नारी के हाथ क्या रहता
एक दिन
सिवाय
पिघली बर्फ के ...!
( चित्र गूगल से साभार )
जैसे
खड़ी दीवारें ,
तपती धूप में खड़ी
भीगती बारिश में ,
सर्द हवाओं के थपेड़े झेलती ...
नारी ही बांधती
बन कर
छत की तरह
सभी रिश्ते -नाते ...
सभी को समेट लेती
बचा लेती ,
तपती धूप
बरसती बारिश
सर्द हवाओं के थपेड़ों से ...
मजबूत छत
जैसी नारी
रिश्ते मिलते उसे
बर्फ की दीवारों से ...
बचाती -समेटती
नाते - रिश्तों को
नारी के हाथ क्या रहता
एक दिन
सिवाय
पिघली बर्फ के ...!
( चित्र गूगल से साभार )
बिलकुल ... अपने आपको मिटा देती है नारी इन रिश्तों को संवारने के लिए ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteवाकई में नारी छत ,छावं,स्नेह ,ममता ,माधुर्य .......को जिवंत करती है
ReplyDeleteवाकई नारी जीवन को संवारती है
ReplyDeleteवह है तो जीवन है
बहुत सार्थक रचना
बधाई
तपती गरमी जेठ मास में---
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (29-05-2013) बुधवारीय चर्चा ---- 1259 सभी की अपने अपने रंग रूमानियत के संग .....! में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रिश्ते तो नारी ही निभाती हैं हर हल में ...
ReplyDeleteनारी हर रिश्ते को निबाहने का प्रयास करती है .....वैसे कई बार रिश्ते नारी की वजह से टूट भी जाते हैं ....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
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