ख़त्म हुआ इंतजार ...!
एक पत्नी का
एक बहन का
और
बेटियों का भी ...!
इंतजार था
एक सुबह वह भी आएगी
जब सूरज उगेगा
ऐसा भी ,
लाएगा साथ अपने
एक ख़ुशी की किरण ...
किरणों पर होगा एक पैगाम
आने का
उसका जो , उनका अपना प्रिय है
आँखों का तारा है ,
चला आएगा राखी के तारों से बंधा
अब खत्म हो गया इंतजार
उन राखियों का भी ...
इंतजार था उसे भी
उस चंदा का ,
जाने कितने करवा -चौथ के
चाँद वारे होंगे उसकी चाह में
अब खत्म हो गया इंतजार
उस चाँद का भी ,
लील गया उसे भी एक गम का
घना बादल ...!
बेटियां भी रह गयी
बस ताकती सूनी राह
तरसी थी बचपन से ही
जिसकी बाहों में झूला झूलना ,
अब इंतजार था जिन बाँहों का
जो डोली में बैठाती
ख़त्म हो गया उन बाँहों का इंतजार,
छूट गया साथ ...
साथ छूट गया एक आस का
बरसों के इंतजार का ........
सटीक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteएक आशा के सहारे सब जी रहे थे ..
वो आशा टूटकर चकनाचूर हो गयी !!
बहुत सुन्दर भावना प्रधान ..
ReplyDeleteपर एक इंतज़ार अब भी बाकि है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (05-05-2013) आ गये नेता नंगे: चर्चा मंच 1235 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
साथ छुट गया बरसों के इंतजार का अच्छी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और मार्मिक अभिव्यक्ति,सादर आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteबहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: दीदार होता है,
वहम में जीता इंसान
ReplyDeleteकुछ इंतज़ार उम्र भर के लिये इंतज़ार ही बने रह जाते हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!
सटीक रचना सच्ची श्रधांजलि
ReplyDeleteकितना कुछ अधूरा छोड़ गये सर्वजीत,क्यों -उत्तर कौन देगा ?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सटीक प्रस्तुति..सर्वजीत को सच्ची श्रधांजली..
ReplyDeletemarmik prastuti.....sahi kaha apne bahut kuch adhura reh gaya...aur koi kuch nahi kar paya
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी कविता , बधाई
ReplyDelete