इकरार और इनकार
के बीच
एक बार फिर
एक बार फिर
से दुविधा ...
काश के तुम
इकरार करते
इकरार करते
तो क्या मैं
इनकार कर पाती ...
इनकार कर पाती ...
तुम हाथ बढ़ाते
तो क्या मैं साथ न
चल पड़ती ...
इकरार किया भी
तो किस
तो किस
मोड़ पर आ कर
जब सारे मोड़ ही
मुड़ गए ...
जो लम्हे
जिए थे साथ तुम्हारे
जिए थे साथ तुम्हारे
आँखों से मोती बन कर
बिखरे पड़े है ,
उसी आँगन में ...
काश !
तुम उन मोतियों
की माला मुझे
पहनाते.......
पहनाते.......
बहुत ही सुन्दर कविता की अभिव्यक्ति,आभार.
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया राजेन्द्र कुमार जी
Deleteसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया मदन सक्सेना जी
DeleteRECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,
ReplyDeleteRECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी
Deleteheart touching lines....really superb
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया रेवा जी
Deleteइकरार और इन्कार में समय खत्म हो जाता है कभी कभी ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
बहुत शुक्रिया दिगंबर नासवा जी
Deleteसमय बीत जाता है कई बार , सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया अरुणा जी
Deleteमनाने मानने के ही चक्कर में बहुत कुछ छुट जाता है ....
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया रमाकांत सिंह जी
Deleteबहुत खूब उपासना जी ,इकरार और इंकार के बिच
ReplyDeleteझूलती जिंदगी का रेखांकन
बहुत शुक्रिया अज़ीज़ जौनपुरी जी
Deleteसुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया संगीता जी
Deleteइंकार और इकरार के अंतराल में जीवन के कितने सुनहरे पल खो जाते हैं...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया कैलाश शर्मा जी
Deleteकाश ! हम जीवन को उन पलों को संभाल पाए . परन्तु होनी भी कोई चीज़ है. सुन्दर कविता
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया रामकिशोर जी
Deletebahut sundar ..donoN mein se ek agar thoda sa jhuk jaye ya chuuppi tod de to kai baar rishtey tootne se bach jate hain...
ReplyDeletehttp://boseaparna.blogspot.in/
खूबसूरत कशमकश
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