एक वो था जो
सांसों में बसा था ,
एक ये जिसके
नाम से सांसे
चलती है ...........
एक वो था जिसने
कभी कदमो में
फूल बिछाये थे ,
और इसने मेरा
दामन ही फूलों
से भर दिया ..........
नज़रों से भी न
छुआ था ,
छुआ था ,
और इसके स्पर्श
ने ही मुझे सोना
बना दिया .......
.कभी उसने गा
कर कहा था ,
बड़े अच्छे लगते है
और इसका मौन ही
गुनगुनाता रहता
है ......
बड़े अच्छे लगते है .........
बहुत भावपूर्ण खुबसूरत रचना
ReplyDeleteLATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल
हार्दिक आभार कालिपद जी
Deleteबहुत बेहतरीन भावनात्मक सुंदर रचना !!!उपासना जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST: जुल्म
हार्दिक आभार धीरेन्द्र सिंह जी
Deleteबहुत ही भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteहार्दिक आभार राजेन्द्र कुमार जी
Deleteजी ये तो दोनों हाथों में लड्डू होने वाली बात हो गयी :):)
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
अब इस उम्र में लड्डू की बात मत कीजिये संगीता जी , मधुमेह होने का खतरा भी है , हाहा ....आभार
Deleteबहुत खूबसूरत ख्याल
ReplyDeleteहार्दिक आभार वंदना जी
Deleteसुन्दर से ख्याल... आभार
ReplyDeleteहार्दिक आभार संध्या जी
Deleteबेहतरीन और लाजवाब।
ReplyDeleteवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आएं ।
हार्दिक आभार इमरान अंसारी जी
Deleteआपकी कविता को पढ कर मन्नु भंडारी जी के एक कहानी की याद आई। शायद आपने भी 'यहीं सच है' कहानी पढी होगी; इस पर फिल्म भी बनी है- नाम 'रजनिगंधा।' अगर आपने कहानी नहीं पढी और फिल्म नहीं देखी तो देखे और पढे भी। 'वो' और 'ये' में फंस कर किसी नतिजे पर पहुंचना मुश्किल होता है। भलाई इसमें होती है कि तुलना छोड किसी नतिजे पर पहुंचे। दूसरी बात तुलना करने वाले को बहुत अच्छा और हराभरा महसूस होता है परंतु असल में जो 'ये' और 'वो' होता है उसके लिए मानो दिल पर छुरी चलाना।
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया विजय जी इतनी अमुल्य टिप्पणी देने के लिए ...मैंने रजनी -गंधा मूवी तो देखी है लेकिन नोवल नहीं पढ़ा ..,
Deleteमुझे इन सब का व्यक्तिगत अनुभव नहीं है किसी का सुना तो लिख डाला...मुझे नहीं मालूम यह किसी को आहत भी कर सकता था
मानना पड़ेगा विजय शिंदे जी को जिनकी जिंदगी और कविता मे छिपे रहस्यों को समझने की पकड़ गज़ब है .....
Deleteउत्तम काव्य पर उत्तम टिप्पणी !
:)
Deleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteशुभकामनायें!
हार्दिक आभार महेश्वरी कनेरी जी
Deleteअच्छों को सब अच्छे लगते हैं ,पर मौका मिले तो ठोंक-बजा लेना भी अच्छा!
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रतिभा जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (07-04-2013) के चर्चा मंच 1207 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteहार्दिक आभार अरुण जी
Deletesacchi nd satik abhiwayakti...
ReplyDeleteहार्दिक आभार निशा जी
Deleteबड़ा अच्छा लगा..
ReplyDeleteहार्दिक आभार अमृता जी
Deletebhavpoorn abhivyakti ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार शालिनी जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ ख़याल ....हार्दिक बधाई
ReplyDelete